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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

बुधवार, 9 दिसंबर 2020

अर्ज़ किया है

आदतें उतनी बिगाड़ो के सम्हल जाएं
यूँ न हो कि सम्हलने में दम निकल जाए

हर फिरका अपनी रवायतों पे चलता है
ख़ौफ़ज़दा गर तंज से हो तो ये हक़ है उनका

शौके जुनूं जो रखते हो दुनिया से अलग चलने का
न फिक्र रवायतों की करो न नज़र से गिरने की


हमसफ़र हो और नज़रे इनायत उसकी
उम्र को चाहिए क्या और गुजर जाने के लिए

रविवार, 29 नवंबर 2020

सीलन से भरी छतें और तारों से टँका आसमान खो गया है --

अब झूठी हैं छतें(फाल्स सीलिंग) और आसमान दिखता ही नही
कल्पना के रंग भर सकें जिनसे बच्चों के हाथ मे अब वो कूंची ही नही
छतों की सीलन और बादलों में बीने जाते ,ढूंढे जाते वो किरदार 
रेखाओं में ढलते ,अल्फाजों में उकेरे जाते वो आकार
अनायास ही ओझल हो गए हैं आंखों से बचपन की 
वीडियो गेम्स और एक्स बॉक्स पर जमी आंखों में बरसती खून की लाली और कर्णभेदी आवाज़ें
चीखोपुकार  बंदूकों और बमों की धमाकों की 
मर जाता है जब कोई इंसान उसमे बड़ी शांति से 
एक बच्चा ठठा कर हंस पड़ता है ।
और मेरे मन के अंदर बौछारें करुणा की भिगो जाती हैं मन मेरा 
सीलन और उमस के इस तेजाबी असर से 

मेरे अंतर्तम की छत छीज जाती हैऔर उस अक्स में फिर कोई बंदूक नज़र आती है।

गुरुवार, 5 नवंबर 2020

अनुत्तरित प्रश्न

जो सवाल बहुत करते हैं न
अक्सर उनके पास कोई जवाब नही होते
प्रश्न उठा कर 
अनुत्तरित छोड़ देना ही उनकी कला होती है
पता नही
जान कर या अनजान में?
पता नही ;
खुद परेशान हैं ,
खुद में परेशान हैं ,
खुद से परेशान हैं ,
या औरों को परेशान करना 
उनकी आदत में शुमार है !
वैसे; शांत पानी मे 
कंकड़ी डाल कर ,
हिलोरें उठा कर 
बेचैन लहरों को देखना 
मुझे भी पसन्द है ।

रविवार, 1 नवंबर 2020

ईमान

गैरों ने कुछ गलत किया इसका हिसाब है
हमने घर कितने उजाड़े इसकी खबर नही

नज़र उनकी उंगलियों पे  है जो उठती अपनी तरफ 
दाग उनके लहू का था जिसपे उस खंजर की खबर नही 

चैनो अमन  की तरबियत होती हो जिस जहान में
वो जहाँ किस फलक पे है इसकी मुझको खबर नही।

गुरुवार, 22 अक्टूबर 2020

बोनसाई

लड़कियां ऐसी ही जन्म लेती हैं ;
खिलती ,खेलती ,
किसी जंगली बेल सी बढ़ती बेपरवाह !!

पर उन्हें तराशा जाता है ,
उनके सपनों  के कंछों को
 कतर के ,
कभी उनकी जड़ो को तारों से जकड़ कर ,
बोन्साई बना देने के लिए ।

कभी नपा-तुला भोजन ,
कभी इंच -दो इंच मुस्कुराहट ,
पनपती गाछ को 
बेदर्दी से उखाड़ दिया जा कर।

 उसे सजना सिखाया जाता है ,
दूसरों के लिए
खूबसूरत शीशों में घेर कर ।
भविष्य में 
किसी आलीशान बंगले के खूबसूरत बैठके की 
शोभा बन सके ,
नक्काशीदार मेज पे सजे किसी गुलदान में।
छीन कर उसकी स्वच्छन्दता,उन्मुक्तता 
बँधने को किसी बन्धन में 
तराशा जाता है उसे।।
                               चेतना

रविवार, 11 अक्टूबर 2020

इन्हें क्यों..?

किसी ने लिखा
"मत जन्म लेने दो इन्हें(लड़की को),इन्हें कोख में ही मर जाने दो"
मेरा सवाल --
इन्हें क्यूँ ,उन्हें क्यों नही?     
                  
 जी अगर वो सकती नही तुम्हारी वजह से
  तो मरने की ज़रूरत किसे है ?
  सीता पर जुल्म करता है रावण तो 
  खत्म किये जाने की जरूरत किसे है?
उसका जीना मरना आप ही 
तय करते आये हैं अब तक,
उस पर जुल्मो सितम आप ही 
करते आये हैं अब तक ,
अब गर्ज़ ये है कि तय वो करे कि ऐसी
औलादों की जरूरत  किसे है   ?

बेटियों को  गर्त किया अंधेरों में 
बेटियों को जब्त करने की सीखें दीं
 बेटियों को तालीम देने से हमेशा
 करते रहे गुरेज़ 
  बेटियों को सभी धर्म 
 सिर्फ पाबंदी सिखाते रहे
  कोई लूट जाए तो जीना मत
  मर जाना ;
  सिर्फ इज़्ज़त को ज़ेवर बताते रहे  ।
  
   कभी किसी मज़हब ने 
   पापी को मारने की तालीम नही दी
   क्या करना है क्या नही 
   ये कभी उस पर नही छोड़ा।
   जानते हैं क्यों?
   क्योंकि धर्म बनाने वाला भी  आदम है
    और जुल्म ढाने वाला  भी वही
    माफ करिये -
    अब इन नसीहतों के दौर का रुख मोड़िये
    किसको जीना है किसको मरना
     ये अब हम पे छोड़िए 
     मर्द के नसीब का फैसला हमारे हाथ है
     जिस दिन इनकार किया औरत ने 
     जन्म देने से उसे 
     क्या होगी उसकी हैसियत
     अब सिर्फ ये सोचिए।।

गुरुवार, 1 अक्टूबर 2020

मेरे गांधी


वक़्त ने जिनको पथप्रदर्शक बनाया
एक कठिन समय मे जिसने सबको रास्ता सुझाया
कुछ तो हट कर हमसे तुमसे उसमे बात होगी
जिसने पूरे विश्व को उसका बनाया

दोस्तों की बात छोड़ो दुश्मनों को भी कभी
उसने 
अपनी खूबी से मुरीद अपना बनाया
जिसमे इतनी ताकत हो वक़्त उसको मिटा सकता नही
कमियां जो देखना चाहते है कसूर ये उनका नही

ये फितरत आदमी की है कि वो रश्क करता है
जहां वो जा न पाए खुद उसको मटियामेट करता है
मोड़ दो या मिटा डालो युद्ध की यही तकनीक है
शांति के दर्शन को वो कब अंगीकार करता है

दूसरों पर तंज कसना ,उँगली उठाना आसान है
खुद को उसके चोले में बिठा पाए ऐसा कौन इंसान है
माना उसके फैसलों में कुछ कमी होगी जरूर
पर मैने कब कहा है  वो इंसान नही भगवान है।

जिनका उसने हाथ थामा वो ही पत्थर मारते हैं 
गन्दगी अपनी सोच की धवल वस्त्र पर उछालते हैं
थूकने से सूर्य पर वो उज्ज्वल स्मित मद्धम पड़ती नही
गिरते हो स्वयम पंक में छवि उसकी धूमिल होती नही।
सादर नमन


बुधवार, 30 सितंबर 2020

रक्त..जगुप्सा..जिजीविषा..विद्रोह

खून से नाता नया नही
हम औरतों का,
खून बहा कर माता का
ठीक तुम्हारी तरह हम भी दुनिया मे आती हैं
और जितना तुम ने देखा नही इस जीवन मे
(चिकित्सक और सिपाही के सिवा),
उतना हम हर माहवारी में बहा देती हैं
और अपने लिए नही तुम्हारे लिए
(ह्न्ह..!!बेटियां मांगता भी कौन है अपवादों के सिवा)
तुम्हे जन्म देने में खून कितना बहा कुछ हिसाब नही
हिसाब रखता भी कौन है ,
चेहरा देख तुम्हारा ;
मुझे याद रखता भी कौन है?
हाँ ,तो खून बहने,बहाने से 
रिश्ता नया नही हमारा
पर ये खून ..!!!
बहता हुआ जननांगों से
कटी हुई जीभ से  
टूटे दांतो,कमर रीढ़ की हड्डियों से 
फूटे सिर से,
दम घुटती साँसों से
बेगैरतों के अत्याचार से
उफ्फ..उफ्फ..उफ्फ..!!
बर्दाश्त नही होता न..?
सुना नही जाता न..?
जुगुप्सा हो रही है न ..?
मुझे भी हो रही है--
तुम्हारे अस्तित्व से
कीड़ों की तरह रेंगते बिलबिलाते
बस वासना की अंधी गलियों
में फिरते,प्रतिशोध की जलन से छटपटाते
या फिर किसी राजनीतिक षड्यंत्र
का ताना बाना बुनते तुम
सवर्ण दलित के खेल खेलते तुम 
हर चुनाव आने से पहले ,हारने के बाद
मुद्दों से भटकाने को,
अपनी चुनावी भट्ठियों में ,
हवस की आग में,
अपनी माँ बहनों को झोंकते तुम..!

हाँ ! मुझे भी हो रही है जुगुप्सा 
तुम्हारे अस्तित्व से..!!!
.
.श्श्..श्श्.श..!!!!!!खामोश
.
.
क्या ये लिखने की बातें हैं ?
क्या ये पढ़ने की बातें हैं?
पर्दे में रखने की,
खुसफुसहटों में कहने की
बातें हैं ये।
सदियों से यही होता आया है,
यही होगा,यही उचित है
.
.
कैसी बेशर्म बेहया हो गयी हैं
 ये आजकल औरतें...।।

मंगलवार, 29 सितंबर 2020

दरकती लड़कियाँ

 इक जमी हुई सी टूटती है बर्फ;एक जगह
और पूरी परत ही चटक सी जाती है
मरती है कोई एक कहीं
पर लड़कियां कितनी दरक जाती हैं

बहुत सी चिटकन दिखाई पड़ती हैं
बड़ी दूर तक कमजोर सतह हो जाती है
कोई निर्भया कोई कामिनी ही नही मरती
एक पूरी संरचना ही बिखर जाती है

टूटती है हर लड़की भीतर से कहीं
रूह अंदर तक कांप जाती है 
नींद फिर मातापिता को कितने
कई रोज तक नही आती है

हर व्यवस्था पर सवाल उठते हैं 
हर लड़की पर सवाल उठते हैं 
हर भाई पर सवाल उठते हैं 
हर दोस्त पे सवाल उठते हैं 

दरक जाती है हर भरोसे हर रिश्ते की नींव
बन्धनों की लगाम कसती है
हर बार इस मकड़जाल में फिर फिर
शिकार लड़की ही फंसती है 

हर स्वतंत्रता पे आंच आती है 
हर कपड़े पे हर अंदाज़ पे तंज होते हैं 
बोलने वालों में गरज ये के 
मुंह औरतों के भी कम नही होते हैं 

बात दीगर तो नही फिर भी है 
बेटियां क्यों शिकार होती हैं 
आदमी की हवस है या के बदला है
औरत क्यों न हार मान लेती है 


सुनो तुम ओ दरिंदो मरेगी नही 
लड़कियां यूँ हर दरिंदगी के बाद 
फिर से खड़ी होगी हक़ से
 हर जुल्मोसितम के बाद

वो ना रही तो फिर कोई तूफान उठेगा
न ज़ुल्म कोई न उसका नामो निशान रहेगा
बांटने की हमको तुम ये क़ोशिश छोड़ दो
वो दलित है या सवर्ण है ये औरत पे छोड़ दो

फूलों की तरह बर्फ हर रोज गिरेगी   
कलियों की तरह बेटियां हर रोज खिलेंगी
जम जाएंगे ये फूल भावना के भर देंगे हर दरार 
दफन जिसमे हो हो के मरेंगे वहशियत के पैरोकार


तनहा

यूं ज़िंदगी हुई बसर तनहा 
के राहें तनहा और मंजिलें तनहा 
काफिले बहुत थे राहों में मगर 
फिर क्यूँ हुआ हर सफ़र तनहा 

हमसफ़र चले थे साथ बहुत
 पर हमनशीं उनमें कोई न था 
जिनको खोजती रही अपनी नज़र 
हमको उसका पता कोई न था 

धुंध लिपटी रही आशियानों के गिर्द खुशदिली  का पता कोई न था
 मौसम पतझरों में बदलते रहे 
उमड़ते सावन का पता कोई न था  

 बहारें आयीं तो वक़्त गुजर जाने के बाद 
दीदार तेरा हुआ उम्र निकल जाने के बाद  अब कहें किस से , किस से शिकायत करें 
 जब लकीरों ने लिख दिया सफ़र तनहा

रविवार, 20 सितंबर 2020

Relations

Relations --a two way road ;never works single way
 make your own path
 if you want to go alone 
if you don't want to share your success
 no one is going to share your pains ,
your joys and  your desires--?
 will never be fulfilled by others
n why should they be ---!
u chose the path 
it is life dear ;never meant to be alone ;
so make your choices ,wisely 
if you want to take something 
always be ready to give 
n specially never hurt those 
who have ever cared for you .--Because-;
they never work a single way--The Relations.

आभासी

तकलीफ होती है मगर 
तोड़ लेना ही बेहतर है 
ऐसे रिश्तों को  जो आभासी हों 
ज़मीन का भ्रम दिलाते हों और 
 गहरे कुएं  के मानिंद 
दफ़न कर सकते हों 
इंतज़ार क्यूँ करें धोखा खाने का 
जब आँख खुल जाए 
सबेरा समझो 
 होता है दर्द पर
 रास्ते अपने फरक कर लो

जो रिश्तों को समझते हैं वो उनकी कद्र करते हैं
सरे महफ़िल करे रुसवा वो कैसे दोस्त होते हैं।

सोमवार, 14 सितंबर 2020

हिंदी

जो जन्म से ही बह रही जो खून में ही रम रही 
जो वेग में प्रवाह में हम सब की सांस -सांस में 

वही विशुद्ध भारती वही प्रबुद्ध भारती 
मेरी बोल चाल में हर रचना के जाल में

स्वप्न रूप धर रही कथानकों में झर रही
मेरी भाव भारती मेरी पूजा आरती

समृद्ध नाट्य गान से ,ग्रन्थ और ज्ञान से
अग्रणी है विश्व में तकनीक के सन्धान में

क्यों न गर्व हम करें क्यों न प्रीत हम करे
हिंदी हमारी शान है मातृवत पहचान है

रविवार, 13 सितंबर 2020

नज़्में

नकाबों की ही दुनिया है नकाबों के ही है बाजार
कातिलों को पूजते हैं मज़लूमियत के पैरोकार

 नकाबों का ही रोना क्या
रूह तक ज़र्द  है दुनिया की
किसी की मौत का बाजार
सरे महफ़िल  जमाया है।
#SSRcase

बिक रही हैं नसीहतें कातिल को खंज़र थमाने की
कहीं दर्द की नीलामी पे बोली लगत्ती है

जाहिराना तौर पर बिके हुए हैं बाजार
कहीं कातिल का सौदा है कहीं मज़लूम बिकता है
जो इंसाँ है जो दानिश है जो भूखा और  नंगा है
सरे बाजार उसकी रुसवाई का तमाशा बिकता है 
ये दुनिया है यहां किसी की मौत का मंजर बिकता है 
न मंज़र हो तो हद ये है कि इंसाफ फिर सरेजहान बिकता है
#SSRcase

शनिवार, 12 सितंबर 2020

इज़हार

ख़ुदा में और ख़ुदी।में कोई दूरी अच्छी नही लगती
रोशनी कोई भी हो अधूरी अच्छी नही लगती

बहुत बिखरे हुए रिश्तों में सुकूँ का एक छाजन बनाया है
बारिशों में नफरतों की अब एक छींट भी अच्छी नही लगती

आज फिर सूरज ने आंखें मुझसे फेर ली हैं अपनी
आज फिर चाहतों  को मेरी ज़मीं अच्छी नही लगती 

 रफ्ता रफ्ता ही सही ज़िन्दगी भी बढ़ रही थी आगे
मगर लगता है हलचलों को मेरी कमी अच्छी नही लगत्ती।

ANTIM सच

Picture credit Kumud Tiwari
बचपन से आज तक स्मृतियों की बाढ़ ..
शरीर कब छोड़ देता है चोला
आत्मा बन जाने के लिए
समय कितना लगता है 
ये सच आजमाने के लिए
शरीरी हकीकत के 
 रूहानी में बदल जाने के लिए
फिर भी गवारा करता नही मन 
इस सच को मान जाने के लिए..

शुक्रवार, 11 सितंबर 2020

हूक

तुझको महसूस किया है अंदर तक
एक शाम जो तेरे साथ गुजारी मैने
एक चाय की प्याली जो साथ तेरे पीनी थी
तेरी यादों के साये तले पी है मैंने

एक हूक जो कलेजे में समाई सी हुई है
एक उदासी जो इस शाम की बायस है
एक खलिश जो कहीं भीतर है 
एक अश्क जो दफन है सीने में


एक कुंवा जो  खाली भी है छलकता भी 
एक बूंद जो बारिश भी है और ओझल भी
एक आग जो बुझती ही नही पानी से

आज उस आग को पी जाने की क़ोशिश की है
फिर एक शाम तेरे साथ गुजारी है मैंने।

शुक्रवार, 4 सितंबर 2020

गुरुदक्षिणा

गुरुदक्षिणा

द्रोण सदृश गुरु है जीवन 
मांगता है दक्षिणा,
उम्मीद ,आशा और खुशी की
मांगता है दक्षिणा

सीखना है अनुभवों से
पर स्वयम से;
आकलन  से;
परिस्थितियों के
संघर्षों से,

फिर भी है गुरु वो--
मांगता है दक्षिणा में
त्यग वो,
दीन की ,नैराश्य की

मांग उसकी 
आस्था है
जीवन में छुपे विश्वास की।

नयन नियति के बन्द हों 
तब भी निशाना हो तेरा।
सामर्थ्य को पहचान कर
एकाग्र हो सन्धान तेरा।

कोई बाधा राह की रोके न 
उसकी दक्षिणा
ज़िन्दगी के अनुभवों का मोल उसकी दक्षिणा।

न तू ,तेरा हासिल रहे
न जीवन का कोई अंश भी 
पर जोबोयेगा  खुशी की 
कोंपलें बाकी रहें ।

बाद तेरे उम्मीद की
 रोशनी बाकी रहे
यही है शिक्षा तेरी 
यही तेरी गुरुदक्षिणा।।

गुरुवार, 3 सितंबर 2020

बिखरे पन्ने

लोगों को सांस लेने की कुछ ऐसी लत लगी है
जीना भी भूल जाते हैं साँसों की फिक्र में

वक़्त बदलने को भी वक़्त लगता हैरुत बदलने का इंतज़ार करो
कल सुहानी सुबह भी आएगी,सिर्फ रात ढलने का इंतज़ार करो

कोई अल्बम नहीं है तेरी यादों का साथ मेरे 
वो पल जो तेरे साथ थे मेरी आँखों में रुके हैं

सबको अधूरा छोड़ गया है वो
सबके भीतर कहीं वाबस्ता सा था वो 

 जिस हर्फ बिन कोई जुमला पूरा नही होता
वो था एक लम्हा जिसके बिन दिन अधूरा है

कोई परवाज़ जिसके बिन पूरी नही होती
कुछ पाखियों का ऐसा हौसला था वो

ज़र्रा ज़र्रा बन के बिखर गए किसीकेसपने
कुछ आंखों की उनींदी नींद सा था वो

वक्त की खामोशी ही यह बयां कर रही है कि चोट बहुत जबरदस्त खाई है  हम सबने

मैं गर खामोश रहूं तो मेरा लहज़ा नही ये
वक़्त ऐसा है कि बोलने को दिल नही करता

लम्हात  जो जी लिए ज़िन्दगी बन जाते हैं
फ़क़त सपने ठहरे जो सिर्फ ख्यालों में रहे

नही रहने पे ज़िन्दगी में नक्श उसके बिखरे हुए मिले
जिसकी परछाईं भी कभी मेरे रास्तों में शामिल नही दिखी




शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

सलीबों के दंश

मिट्टी भी जो पक जाती है
एक सांचे में ढल जाती है
रूप ,आकार नही बदल पाती
जबरी करोगे जो तो टूट जाती है।
पर बेटी कहो के नारी
हैसियत शायद मिट्टी से भी कम रखती है
ढाल कर उसको एक साँचेमे पचीसों बरस 
उम्मीद रखते हैं उसके अपने भी
की बदल देगी अपना चोला भी सिंदूर पड़ते ही
गैरों से फिर तो क्या ही उम्मीदें हैं।
आदर्श सिर्फ कोरे आदर्शों की उम्मीदे हैं औरत से ही क्यों
मानो उसकी जिंदगी नही सिर्फ आदर्श की सलीबें हों
जिनपे लटकते 
हर नई कील के दर्द में सीझते गुज़ार देती है उम्र पूरी
पर फिर जी नही पाती वो पच्चीस बरस ज़िन्दगी के 
जो छोड़ आई थी पीछे एक गठरी में बांध के

रविवार, 19 जुलाई 2020

सुलगते बचपन के दंश

कैक्टस देखे हैं ना!
पत्तियां सूख कर 
कांटों में तब्दील होती हुई,
दहकती भट्ठियों में उबलते बचपन भी,
 बस कांटे बन के चुभते रहते हैं ।
झार झार बहते आंसुओं में भी, उपवन न सही; 
बियाबान ही सही;
 उग जाते हैं ।
ठंढ और छांव की उम्मीद
 तो रहती है कहीं ।
कैक्टस तो दंश बन के चुभते ही रहेंगे उम्र 
हर वो दंश याद दिलाएगा वो कड़वाहट
जो उम्र भर झेली है 
किसी ने
और आज भी उसके विष से कोई आज़ाद नही।

गुरुवार, 9 जुलाई 2020

भर पाये

कभी दिल कह रहाहै
बहुत हुआ 
अब जाने दो
कुछ होता है 
उँह!हो जाने दो।
भर पाए अब इस जंजाल से
ऊब चले अब रोज के बवाल से।
इसको रोकना अब सम्भव नही है
लोग पढ़े लिखे हैं ,अनपढ़ नही है
क्या करें पर भावना में बह जाते हैं
छोटी ही सही 
पर महफिलें सजाते हैं
हाथ गले मे डाल बस फोटुएं खिंचाते हैं
और हम वज्रमूर्ख से लोगों को
सोशल डिस्टेनसिंग समझाते हैं
घर आने वालों को 
दूर से नमस्कार करते हैं ।
हम कोविड और 
लोग कोरोना चिल्लाते हैं।
बस हम जो कहते हैं 
कर के बुरे बनते हैं
लोग कर के 
हाथ जोड़ निकल जाते हैं
अब कभी लगता है हमे 
के हम पैरानॉयड हो गए हैं 
लोग समझदार और हम 
गाफिल हो गए हैं ।
अगर यही करना है 
तो ऐ मन चलो काम करो
बहुत हो चुका 
न अब आराम करो 
जो होना है होगा 
जिसको जीना मरना है
जिसको जाना है जाएगा
तुम भी अब अपना काम करो 
अब ना आराम करो।

गुरुवार, 2 जुलाई 2020

जीवन

जीवन क्या है -
एक भावप्रवण बहती सरिता।
इक उद्गम , इक उन्मूलन है।
बीच मे बहता हास्य इधर,
 उस छोर बह रहा क्रंदन है।
उन्मीलित सृष्टि के नयनों की
जब भी तुम झांकी पाओगे ,
शाश्वत मृत्यु को जीवन का 
संचालन करता पाओगे।
इस प्रखर, प्रकट ,
ध्रुव सत्य शिखर पर 
दो अश्रु विसर्जन  कर धीर धरो,
ये कृष्ण वचन है 
अर्जुन तुम 
अब जीवकर्म गांडीव गहो।।

गुरुवार, 25 जून 2020

इंतज़ार

तुम आओगे तुमने कहा था
तुम आये क्यों नहीं , तुमने बुलाया क्यों नहीं
कितना पानी बह गया
समय के दरिया में
मैं खड़ी रही ,किनारे पर एक तरफ
तुम आये क्यों नहीं ,तुमने बुलाया क्यों नहीं
तुम अब क्यों आये हो आवाज़ दे रहे हो इतनी जोर से
क्यों बुला रहे हो मुझे
मानो मेरे बिन तुम्हारा कोई नहीं
तुम अब क्यों आये हो जब तुम्हारा आना
कोई आना न रहा
मैं मैं न रही  और कोई सपना बाकी न रहा

रविवार, 21 जून 2020

बस इतना सा आसमान

बस उतना ही आसमान मेरा है.......
बरसों पहले,एक लड़की थी, मेरी साथी,मेरी दोस्त ,मेरी बहन ,बहुत अजीज़ ;बिंदास हंसती खेलती, खुश रहने वाली खुश रखने वाली, मतलब ये के बहुत प्यारी ।खुलते आसमानों में चिड़िया जैसी ,कोई रोक नही बन्धन नही , भाई नही थे तो लड़को का काम भी खुद ही करना था अंदर बाहर सभी 
 फिर अलग हो गए हम, मिली उस से कुछ समय बाद , शादी के बाद उसकी , घर गयी थी ,दो तल्ला मकान सभी सुख सुविधाओं से भरा ,पुरानी हवेली की तरह | रौशनी के लिए ,हवा के लिए ,खिड़कियां और रौशनदान तो थे मगर सींखचे बन्द थे 
बोलने की इज़ाज़त तो थी ,मगर सिर्फ हाँ  ।
हैरान थी ,जो लड़की खिलखिला के हंसती थी तो सारी दिशाएं कौंध जाती थीं, ग्रहण लग गया था उस हंसी को ,आने से पहले मिली तो खिड़की की सलाखों को पकड़ घूँघट लिए खड़ी थी
वो, जैसे पिंजरे में बन्द मैना जिसका आकाश सिमट आया था मानो खिड़की में
 मेरा आकाश बस इतना सा ,
मेरी दुनिया कितनी सिमटी सी
मेरी नज़रो में समाई धुप छाँव ,
बस इतनी सी...!!
कल तो दुनिया का  मेरी 
 फैलाव समेटा जाता न था,
इक छोर था मेरा जहाँ
 दूसरा सिरा कोई न था।
खुलते बहते बादल थे मेरी 
अठखेलियों का सामान,
और धुप छाँव में
 मेरी खुशियों के रंग खिलते थे ।
आज बन्द एक खिड़की से 
दीखता हुआ एक कोना 
जो शायद स्याह है ,
मेरी बुझती उम्मीदों के रंग ले कर।
उतना ही ;
बस उतना ही ;आसमान मेरा है।

शनिवार, 20 जून 2020

पीछे छूटती अम्माँ

बाप और बेटे के बीच मे ठहरी
बफर सोल्यूशन सी अम्मा 
रस्साकशी में पिता पुत्र की
 फ़सरी में बस खींची जाती अम्माँ

बाप की गलियों और लाठियों से
बेटे के सामने पड़ बचाती अम्माँ
बेटे की फरमाइशों और ख्वाहिशों को
ऊपर तक पहुंचा बस झिड़की खाती अम्माँ
तब भी शायद बेटे को मिसरी सी लगती अम्माँ

...बस एक उम्र तक ,
उसके बाद.....

हर गलत फैसले बीते दिनों के ,
की ज़िम्मेदार ठहराई जाती अम्माँ
बाप भी खुश और बेटा खुश 
बस फूंक में उड़ाई जाती अम्माँ

अब बेटे की नज़रों में  शिकायत सी चमकाई जाती अम्माँ
हर झगड़े में कुटिल चाणक्य सी दिखलाई  जाती अम्माँ

घर में रही और  घर से ही बन्ध कर रह गयी जो अम्माँ
बेटे को बदलते और पिता सा ढलते देखती रह गयी अम्माँ।।

गुरुवार, 18 जून 2020

खामोश ख्वाहिशों के जंगल

कितना कुछ है न ,
जो आप साझा करना चाहते हो 
किसी अपने से ;
किसी खास से ..!!
छोटी छोटी बातें ,सपने ,उलझनें ,
कोई हल्की फुल्की सी  बात,
 कोई उच्छ्वास;
झूल जाना यूँ ही हंसते- हंसते ,
किसी कंधे पे अचानक;
या यूँ ही हाथ पकड़ कर बैठे रहना
उसकी उंगलियां  गिनते ;
या फिर बालों में घुमाते हाथ ,
बालों को हल्के से जकड़ के
 फिर छोड़ देना....!
और उन उट्ठी हुई पलकों को बेसाख्ता
चूम लेना आहिस्ता से
कुछ लकीरों में ये ख्वाब होते हैं
साथ चलते हुए उम्र भर...खामोश !!

बुधवार, 17 जून 2020

नादान ये दिल माना ही नही. .

ख़्वाब कई, अल्फ़ाज़ कई,
कुछ ज़ाहिर थे, पर कहे नहीं,
कुछ बोल दिए, कुछ कभी नहीं।

कुछ अहसासों को शब्द मिले
कुछ गहन मौन में खो से गए
हर गीत संजोया भावों में
कल मिलने की हसरत में सही
ये सहर गलत तो रात सही
ये ज़मीं गलत तो फलक सही
वो हर लम्हा हर वक़्त सही
जहाँ हम तुम हों तन्हाई भी

कुछ गीत हों और अफसाने हों
हम जैसे कुछ दीवाने हों
अल्फ़ाज़ वही दोहराने हों 
पलकों में वो ख्वाब सजाने हों

जो मेरे थे पर पलको में सदा
ये छवि तेरी दिखलाते रहे
जिन्हें कभी किसी से कहने को 
नादान ये दिल माना ही नही..

..नादान ये दिल माना ही नही।।

रविवार, 7 जून 2020

विचलित

मुझे लगता है कि मैं अमरबेल हूँ;
जी जाऊंगी
कोई साथ रहे ना रहे
 
हर रिश्ते से भाग आती हूँ मैं ,
गांठ खोल कर,
कर लुंगी पूरा ये सफर 
कोई साथ चले ना चले

किसी रिश्ते को जकड़ने को 
लगाती नही पूरी ताकत
कोई छोड़े मुझे  उससे पहले 
छोड़ आती हूँ मैं हर रिश्ता खुद से
निबाह लुंगी मै खुद से
कोई जुड़े मुझसे, न जुड़े।


बुधवार, 3 जून 2020

मीमाँसा

प्रेम कितना दुरूह है ..!
...और कितना सरल।!!
कृष्ण और राधा ;
राधा और कृष्ण
कृष्ण की राधा 
या राधा बिन कृष्ण,
मीमांसा करते युग निकल गए 
कोई थाह न पा सका ।
अनवरत है प्रेम उनका,
 अबाध -निर्बाध   ;
 पाने और खोने ,
 मिलने और बिछुड़ने की
  सीमाओं से ,
 अनाविष्ट ;
 कितना सहज ,
 फिर भी;
  कितना उलझा हुआ !
 कितना सुगम,
  फिर भी अगम्य!!
पर प्रेम है ..सिर्फ प्रेम!!

शुक्रवार, 22 मई 2020

तेरा होना

कोई ऐसे भी साथ छोड़ता है भला
चुपचाप,निःशब्द
दबे पांव निकल जाता है भला ?
कोई ..!
जिंदगी से जीवन ही खींच जाता है 
जैसे भटकती है कोई रूह 
ऐसे सरे मंजिल भटका जाता है
 ऐसे भी हाथ छोड़ता है भला
कोई..!!
वो उजाला तेरी आँखों का था शायद
जो सदा आसपास फैला था
वो गर्मी वो महक 
तेरी मौजूदगी भर से थे शायद
बड़ी नमी बड़ी बिछलन सी 
है अब अंधेरी गलियों में
तेरे हाथों की तलाश मुझको अब 
तेरी याद दिलाती है बहुत 




बुधवार, 29 अप्रैल 2020

प्रश्नचिन्ह


शायद कुछ को है बुरी लग सकती
पर कहे बिना ये बात भी तो रह नही सकती
कैसा लगता है जब भगवान को राम के पद से हटा कर आम बना दिया जाए
कर्तव्य हमारे का निर्धारण किसी और द्वारा किया जाए
जब तलक न मिले शासन का आश्वासन
हम तोड़ भी कैसे सकते है अनुशासन
हमें है विश्वास विधा पर कर सकते हैं हम भी चमत्कार
पर दिया भी तो जाए परीक्षण का अधिकार
ये कैसे हैं कहे जा रहे भगवान हम
जब विनाश काल मे आ भी ना सकें काम हम
कल यही उठाएंगे हम पे उंगलियाँ
और लगाएंगे सवाल हमारे अस्तित्व हमारी विधा पर
बताएंगे हमे निष्प्रयोज्य और फज़ूल
क्या ये सवाल आपको नही करते
उद्वेलित
क्या है कोई जवाब ।
क्या है कर्तव्य हमारा और क्या अधिकार?