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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

गुरुवार, 22 अक्टूबर 2020

बोनसाई

लड़कियां ऐसी ही जन्म लेती हैं ;
खिलती ,खेलती ,
किसी जंगली बेल सी बढ़ती बेपरवाह !!

पर उन्हें तराशा जाता है ,
उनके सपनों  के कंछों को
 कतर के ,
कभी उनकी जड़ो को तारों से जकड़ कर ,
बोन्साई बना देने के लिए ।

कभी नपा-तुला भोजन ,
कभी इंच -दो इंच मुस्कुराहट ,
पनपती गाछ को 
बेदर्दी से उखाड़ दिया जा कर।

 उसे सजना सिखाया जाता है ,
दूसरों के लिए
खूबसूरत शीशों में घेर कर ।
भविष्य में 
किसी आलीशान बंगले के खूबसूरत बैठके की 
शोभा बन सके ,
नक्काशीदार मेज पे सजे किसी गुलदान में।
छीन कर उसकी स्वच्छन्दता,उन्मुक्तता 
बँधने को किसी बन्धन में 
तराशा जाता है उसे।।
                               चेतना

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