अनपढ़ जो सुन कर करते थे
हमने भी अर्थ नही ढूंढा
वो आंख मूंद कर चलते रहे
हमने भी मर्म नही बूझा
जल जीवन है जल संचय करो
हमने शावर और टब घर घर बनवाये
वो तालाब बावड़ी बनवाते
हमने वो सारे पटवाये
वो धर्मकार्य के हेतु सदा फलदार वृक्ष लगवाते रहे
हम बुलेट ट्रेन चलवाने को हजारों पेड़ कटवाने चले
वो बरगद पीपल पूजते थे
हमने जंगल के जंगल कटवाए
वो वहम के मारे अनपढ़ थे
हम खुद को ज्ञानी साबित कर आये
अब त्राहि त्राहि हम करते हैं संचय जल की बातें करते है
जीवन संकट जब सन्मुख आया
अनपढ़ को याद हम करते हैं
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें