कभी दिल कह रहाहै
बहुत हुआ
अब जाने दो
कुछ होता है
उँह!हो जाने दो।
भर पाए अब इस जंजाल से
ऊब चले अब रोज के बवाल से।
इसको रोकना अब सम्भव नही है
लोग पढ़े लिखे हैं ,अनपढ़ नही है
क्या करें पर भावना में बह जाते हैं
छोटी ही सही
पर महफिलें सजाते हैं
हाथ गले मे डाल बस फोटुएं खिंचाते हैं
और हम वज्रमूर्ख से लोगों को
सोशल डिस्टेनसिंग समझाते हैं
घर आने वालों को
दूर से नमस्कार करते हैं ।
हम कोविड और
लोग कोरोना चिल्लाते हैं।
बस हम जो कहते हैं
कर के बुरे बनते हैं
लोग कर के
हाथ जोड़ निकल जाते हैं
अब कभी लगता है हमे
के हम पैरानॉयड हो गए हैं
लोग समझदार और हम
गाफिल हो गए हैं ।
अगर यही करना है
तो ऐ मन चलो काम करो
बहुत हो चुका
न अब आराम करो
जो होना है होगा
जिसको जीना मरना है
जिसको जाना है जाएगा
तुम भी अब अपना काम करो
अब ना आराम करो।
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