ख़्वाब कई, अल्फ़ाज़ कई,
कुछ ज़ाहिर थे, पर कहे नहीं,
कुछ बोल दिए, कुछ कभी नहीं।
कुछ अहसासों को शब्द मिले
कुछ गहन मौन में खो से गए
हर गीत संजोया भावों में
कल मिलने की हसरत में सही
ये सहर गलत तो रात सही
ये ज़मीं गलत तो फलक सही
वो हर लम्हा हर वक़्त सही
जहाँ हम तुम हों तन्हाई भी
कुछ गीत हों और अफसाने हों
हम जैसे कुछ दीवाने हों
अल्फ़ाज़ वही दोहराने हों
पलकों में वो ख्वाब सजाने हों
जो मेरे थे पर पलको में सदा
ये छवि तेरी दिखलाते रहे
जिन्हें कभी किसी से कहने को
नादान ये दिल माना ही नही..
..नादान ये दिल माना ही नही।।
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