लोगों को सांस लेने की कुछ ऐसी लत लगी है
जीना भी भूल जाते हैं साँसों की फिक्र में
वक़्त बदलने को भी वक़्त लगता हैरुत बदलने का इंतज़ार करो
कल सुहानी सुबह भी आएगी,सिर्फ रात ढलने का इंतज़ार करो
कोई अल्बम नहीं है तेरी यादों का साथ मेरे
वो पल जो तेरे साथ थे मेरी आँखों में रुके हैं
सबको अधूरा छोड़ गया है वो
सबके भीतर कहीं वाबस्ता सा था वो
जिस हर्फ बिन कोई जुमला पूरा नही होता
वो था एक लम्हा जिसके बिन दिन अधूरा है
कोई परवाज़ जिसके बिन पूरी नही होती
कुछ पाखियों का ऐसा हौसला था वो
ज़र्रा ज़र्रा बन के बिखर गए किसीकेसपने
कुछ आंखों की उनींदी नींद सा था वो
वक्त की खामोशी ही यह बयां कर रही है कि चोट बहुत जबरदस्त खाई है हम सबने
मैं गर खामोश रहूं तो मेरा लहज़ा नही ये
वक़्त ऐसा है कि बोलने को दिल नही करता
लम्हात जो जी लिए ज़िन्दगी बन जाते हैं
फ़क़त सपने ठहरे जो सिर्फ ख्यालों में रहे
नही रहने पे ज़िन्दगी में नक्श उसके बिखरे हुए मिले
जिसकी परछाईं भी कभी मेरे रास्तों में शामिल नही दिखी
2 टिप्पणियां:
बेहद खूबसूरत और अर्थपूर्ण रचना है।
थैंक्स सांत्वना
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