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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

सोमवार, 14 सितंबर 2020

हिंदी

जो जन्म से ही बह रही जो खून में ही रम रही 
जो वेग में प्रवाह में हम सब की सांस -सांस में 

वही विशुद्ध भारती वही प्रबुद्ध भारती 
मेरी बोल चाल में हर रचना के जाल में

स्वप्न रूप धर रही कथानकों में झर रही
मेरी भाव भारती मेरी पूजा आरती

समृद्ध नाट्य गान से ,ग्रन्थ और ज्ञान से
अग्रणी है विश्व में तकनीक के सन्धान में

क्यों न गर्व हम करें क्यों न प्रीत हम करे
हिंदी हमारी शान है मातृवत पहचान है

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