
सोई व्यथा सी जग उठी,
कोई बदली नीर बन कर बह चली,
बिन तुम्हारे ;
जगती आँखें
राह तक तक थक चलीं ,
सोती आँखें ,ख्वाबकुछ चुनती रहीं,
बिन तुम्हारे ;
नयन खोये या के सोये
रात सोये,स्वप्न जागे
प्रीत का हर गीत जागे,
हर सहर ,हर साँझ जागे ,साथ मेरे,
बिन तुम्हारे ;
इक पथिक ,इक राह सूनी
कल्पना भी रच ना पाई,भावभीनी
प्रणय गीतों से सजी,
रजनी सुहानी,
बिन तुम्हारे ;
बांसुरी की तान
बसती हो जहां ,
कोई सांस ,
अंदर उनीदी सी जगी हो,
याद कुछ आता नही,
इक बोल कोई,
प्रेम जिस के कण कण में बसा हो,
बिन तुम्हारे ;
व्यर्थ सी इक कल्पना है,
रंग जिसमें भर सकी ना
कोई भी कूची
रसहीन जीवन ,बेताल सांसें,
चल रही हैं और यूँ चल रहा है जीवन,
बिन तुम्हारे,बिन तुम्हारे ll,
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