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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

बुधवार, 3 जून 2020

मीमाँसा

प्रेम कितना दुरूह है ..!
...और कितना सरल।!!
कृष्ण और राधा ;
राधा और कृष्ण
कृष्ण की राधा 
या राधा बिन कृष्ण,
मीमांसा करते युग निकल गए 
कोई थाह न पा सका ।
अनवरत है प्रेम उनका,
 अबाध -निर्बाध   ;
 पाने और खोने ,
 मिलने और बिछुड़ने की
  सीमाओं से ,
 अनाविष्ट ;
 कितना सहज ,
 फिर भी;
  कितना उलझा हुआ !
 कितना सुगम,
  फिर भी अगम्य!!
पर प्रेम है ..सिर्फ प्रेम!!

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