प्रेम कितना दुरूह है ..!
...और कितना सरल।!!
कृष्ण और राधा ;
राधा और कृष्ण
कृष्ण की राधा
या राधा बिन कृष्ण,
मीमांसा करते युग निकल गए
कोई थाह न पा सका ।
अनवरत है प्रेम उनका,
पाने और खोने ,
मिलने और बिछुड़ने की
सीमाओं से ,
अनाविष्ट ;
कितना सहज ,
फिर भी;
कितना उलझा हुआ !
कितना सुगम,
फिर भी अगम्य!!
पर प्रेम है ..सिर्फ प्रेम!!
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