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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

मंगलवार, 12 जुलाई 2022

यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर ,
तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं ,
बिखरे हुए दानों की तरह
मुझे यूँ ही 
कभी कभी,
 झांकते हुए से 
 कभी इस पल्ले से ,कभी उस झरोखे से,
कभी बंद तालों में ,
कभी ऊंची ढकी बरसातियों में ,
कभी बरसों से खुली नही,
 उन किताबों में;
कुछ के जवाब कभी गए नही 
पर ज़ुबाँ की नोक पर रखे हुए हैं ;
आज भी,
कुछ लम्हों को याद करते आज भी जी मसोसता है 
कुछ छुपी खिलखिलाहटें  ,
सरगोशियां सुनाई देती हैं
कुछ बंद दरवाज़ों के पल्ले उघाड़ देती हैं 
तेरी चिट्ठियां ;
सम्हाली नही हैं मैने ,
बिखेर रखी हैं चावल के दानों की तरह 
यादों की चिड़िया आती रहेगी मेरे आंगन 
किसी बहाने तो

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