कब किस जगह किस राह में
कहीं खो गयी तेरी आहटें,
...मेरी राहतें
मेरी मंज़िलें तेरे फासले
मेरी चाहतें,तेरी दूरियां
..सरगोशियां,सच्चाइयां
कुछ हमकदम,कुछ हमनवा
अपने सभी,फिर भी नही
..एक हमख्याल।
एक ख्वाब सा, कुछ दूर सा
अपना नही मगर खुद सा
..कोई दोस्त था।
कोई खामख्वाह,बेहोश सा,
सपना कोई मदहोश सा,
....नींद का झोंका कोई।
.बस सुबह की नींद का हासिल कोई;
ना साथ था,ना साथ है,
.....फिर भी कहीं जगता हुआ,
- .....अपना कोई।
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