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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

शनिवार, 12 सितंबर 2020

इज़हार

ख़ुदा में और ख़ुदी।में कोई दूरी अच्छी नही लगती
रोशनी कोई भी हो अधूरी अच्छी नही लगती

बहुत बिखरे हुए रिश्तों में सुकूँ का एक छाजन बनाया है
बारिशों में नफरतों की अब एक छींट भी अच्छी नही लगती

आज फिर सूरज ने आंखें मुझसे फेर ली हैं अपनी
आज फिर चाहतों  को मेरी ज़मीं अच्छी नही लगती 

 रफ्ता रफ्ता ही सही ज़िन्दगी भी बढ़ रही थी आगे
मगर लगता है हलचलों को मेरी कमी अच्छी नही लगत्ती।

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