गुरुदक्षिणा
द्रोण सदृश गुरु है जीवन
मांगता है दक्षिणा,
उम्मीद ,आशा और खुशी की
मांगता है दक्षिणा
सीखना है अनुभवों से
पर स्वयम से;
आकलन से;
परिस्थितियों के
संघर्षों से,
फिर भी है गुरु वो--
मांगता है दक्षिणा में
त्यग वो,
दीन की ,नैराश्य की
मांग उसकी
आस्था है
जीवन में छुपे विश्वास की।
नयन नियति के बन्द हों
तब भी निशाना हो तेरा।
सामर्थ्य को पहचान कर
एकाग्र हो सन्धान तेरा।
कोई बाधा राह की रोके न
उसकी दक्षिणा
ज़िन्दगी के अनुभवों का मोल उसकी दक्षिणा।
न तू ,तेरा हासिल रहे
न जीवन का कोई अंश भी
पर जोबोयेगा खुशी की
कोंपलें बाकी रहें ।
बाद तेरे उम्मीद की
रोशनी बाकी रहे
यही है शिक्षा तेरी
यही तेरी गुरुदक्षिणा।।
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