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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

गुरुवार, 21 अक्टूबर 2021

अदृश्य

भाव कोई कल्पना नही होते
 कुछ अदृश्य सी तरंगे होती हैं 
 
 ढूंढती हूँ बहुत दिनों से उन्हे 
जो गुम हो गये  है अंतस में मेरे

कभी हिया की पीर में कभी व्यथा के संग
कभी खामोशी के दर्पण में 
कभी शब्दों के व्यवहार में


कुछ ख्वाब हैं अधूरे कुछ रिश्ते रूठे हुए
खुशियां बिखरी हैं कुछ
 चाहतें भी कुछ हैं अपूर्ण
 
मन करता कभी रोने का
आंखें मींज सोने का
कभी मन करता हंसने का
खिलखिला के झूमने का
जी चाहता है आज मुझको कोई दिखाई न दे
या फिर मैं भी अदृश्य सी हो जाऊं

ममता को भी किसने देखा है
बिरला ही वंचित है इससे
 आगोश में जब भी लेती है तो 
 भर देती है मन आंगन को

अदृश्य है सूरज की गर्मी, 
पर इंद्रधनुष  सजता उससे
देखा किसने सुर तालों को
पर इनसे ही मधुर संगीत बने

कभी आसमान के आंसू को 
ओस में ढलते देखा है
कलियों की पुलक को खिल खिल कर
फूलों में विहंसते देखा है

छू जाए मन को वो सुकून 
दिखता ही नही इन आँखों को
बस इक अदृश्य सी खुशबू ये
मैं बन जाऊं तो तर जाऊं

मैं हरसिंगार  बन के श्रृंगार
कुछ तम हर लूँ अंधियारे का
कुछ वेग पवन से ऋण ले कर
फैला पाऊँ मन का प्रकाश/उजास

ज्यूँ सृष्टि रची उस ईश्वर ने 
कोई माला में धागे सदृश
खुद रहा अगोचर चित्रकार
फिर भी उद्भासित वो कलाकार

उसकी रचना हूँ मैं फिर भी चाहूं कि उसके समान 
कोई सृष्टि रचूँ में भी जिसमे बस जाएं बस मेरे मन प्राण
होऊं अदृश्य फिर भी मेरे निशान निष्प्राण न हों 
मेरी खुशबू से मेरी दुनिया मेरे बाद  सुवासित हो
  

मेरी परवाज़

मेरा ही अक्स है तू शायद
फिर भी तेरी ही बात है तुझमे
कुछ जीते हुए से सपने हैं
कुछ आसमाँ भी हैं शायद
मेरे सपनों की तू  इबारत है
मेरे कल का भी तुझपे साया है 
कुछ तल्खी भी खुशमिजाजी भी 
कुछ अरमानों का बोझ भी शायद

तेरा हौसला सिर्फ तेरा है 
मेरे हौसलों के पर चुक गए हैं अब तो 
आने वाले कल की आहट तू
 छुपते सूरज की लाली हम शायद

कल का आसमान तेरा है
हमने तुझको तेरी परवाज़ दे दी
नाप ले तू सारी दुनिया को
अब ये तेरी या रब की है मर्ज़ी।

मुड़ मुड़ के देखना न पीछे कभी
तेरी दुनिया का क्षितिज आगे है
कभी थक जाए गगन में उड़ते हुए 
तेरे अपनों का आँचल नीचे है 

जब भी चाहे मैं तेरी छांव बनूं 
जब भी सोए मैं तेरी ठाँव बनूं 
मेरी आहट तेरी दुनिया मे हमेशा रहे
कल को कभी मैं रहूं न रहूं।




मंगलवार, 29 जून 2021

पर्यावरण चिंतन -वस्तुस्थिति


अनपढ़ जो सुन कर करते थे
हमने भी अर्थ नही ढूंढा
वो आंख मूंद कर चलते रहे
हमने भी मर्म नही बूझा

जल जीवन है जल संचय करो
हमने शावर और टब घर घर बनवाये
वो तालाब बावड़ी बनवाते
हमने वो सारे पटवाये

वो धर्मकार्य के हेतु सदा फलदार वृक्ष लगवाते रहे
हम बुलेट ट्रेन चलवाने को हजारों पेड़ कटवाने चले

वो बरगद पीपल पूजते थे 
हमने जंगल के जंगल कटवाए
वो वहम के मारे अनपढ़ थे
हम खुद को ज्ञानी साबित कर आये

अब त्राहि त्राहि हम करते हैं संचय जल की बातें करते है
जीवन संकट जब सन्मुख आया
अनपढ़ को याद हम करते हैं

शुक्रवार, 25 जून 2021

बिछोह!

क्या माता का उर न कातर होता होगा?
छलनी क्योंकर न कलेजा होता होगा।
तुझको विदग्ध यूँ देख देख  क्या हृदय न वो फटता होगा?
माता की पीर हृदय में रख
निजव्यथा से उठ सन्धान करो
हर माँ में वो छवि  निरख निरख कर्तव्य को अंगीकार करो।
भगवान इस अपार दुख को सहन करने की शक्ति आपको प्रदान करें ।

गुरुवार, 24 जून 2021

शायद...!!


शायद कोई पत्ता खड़के शायद कोई उम्मीद जगे
शायद नदिया थम जाए,शायद तुम सच मे आ जाओ

शायद कोई आस जग जाए नई ,शायद कोई तो कांधा हो ,
थक जाने पर सुस्ताने को या फिर  कोई राह दिखाने को
शायद मेरे कदमो के नीचे भी कभीअपने हाथ बिछाये कोई
शायदमेरे सपनों के दिये में कभी बाती बन उजास लाये कोई
शायद कोई टूट के चाहे शायद कोई साथ निभाता हो
शायद मेरे मुश्किल पथ में कोई मेरा साथ निभाता हो।
सपनो की इस दुनिया मे शायद कोई शक्ल कभी उभरे
शायद इस जीवन पथ में कभी कोई रोशन दीप कभी उभरे 
शायद...

गुरुवार, 10 जून 2021

हमसफर

 अच्छा है 

कुछ कदम की हों दूरियां तो आप बढ़ के  मिटा लीजिए 


गुलों में  सिर्फ खुशबुओं की हो जो दास्तान तो बहुत अच्छा है 

साथ गर कांटे भी हों तो चुभन  का मिलकर मजा लीजिए


दूर तलक तेरी राहों में सुबहा की ही आहट हो तो बहुत अच्छा  है 

जो कहीं सफर में रात हो चले तो आसमानों को चादर बना लीजिए 


ज़िन्दगी मौसीकीयों की मजलिस हो तो क्या बात है और जो वीराने मिल जाएं  कहीं तो साथ महफ़िल सजा लीजिए


कदम कदम पर जो उसकी निगहबानी हो तो बहुत अच्छा है मगर जो  दूरी दरमियानी हो तो  तसव्वुर में उन निगाहों को बसा लीजिए


हमसफ़र

हमसफ़र हमकदम  हमख्याल भी हो तो बहुत अच्छा है 
कुछ कदम की हों दूरियां तो आप बढ़ के  मिटा लीजिए 

गुलों में  सिर्फ खुशबुओं की हो जो दास्तान तो बहुत अच्छा है 
साथ गर कांटे भी हों तो चुभन  का मिलकर मजा लीजिए

दूर तलक तेरी राहों में सुबहा की ही आहट हो तो बहुत अच्छा  है 
जो कहीं सफर में रात हो चले तो आसमानों को चादर बना लीजिए 

ज़िन्दगी मौसीकीयों की मजलिस हो तो क्या बात है 
और जो वीराने मिल जाएं  कहीं तो साथ महफ़िल सजा लीजिए

कदम कदम पर जो उसकी निगहबानी हो तो बहुत अच्छा है 
मगर जो  दूरी दरमियानी हो तो  तसव्वुर में उन निगाहों को बसा लीजिए



शुक्रवार, 21 मई 2021

काश..चांदी की पायल दे पाते....

चांदी की पायल भी दे पाते 
हाय ये हसरत ही रही
रोटी से उबर न पाए हम 
ऐसी ये किस्मत ही रही

काश पसीने से भीगे
 तेरे लिलार के स्वेद बिंदु
 तेरी ग्रीवा का हार बने
मोती में ढल श्रृंगार बनें।

हसरत ही रही सिंदूर तेरा
स्वर्ण लीक से दप दप दमके
तेरे पग में पायल छनके
तेरे कंगना का गीत बजे

रोटी और छत के बोझ तले
ये स्वप्न मेरे कितना सिसके।
इस ज्वाला के दावानल में 
हृदय मेरा धू धू धधके।

पर हाय प्रिये मेरी प्रियतम 
मनसे विचार से सुंदरतम
तुम में है धैर्य समंदर का 
तुम उच्च सर्वथा नीलगगन

तेरे सामर्थ्य का पासंग नही 
मैं पर्वत में भी पाता हूँ
तेरे समान गहराई भी
सागर में ढूँढ़  न पाता हूँ

मुझको ना नैराश्य धरे 
तुम कोमल सुर बन जाती हो
अपने सपनो को भूल भाल
मेरा सामर्थ्य  बढ़ाती हो

तुम प्राणाधिक प्रिय हो मेरी सखी
 तुम मेरा बल हो मेरी सखी
इस जग के ही हैं सब सुख दुख
अपने ही तो हैं सब सुख दुख 

इनमें हम साथ निभाएंगे
हर बाधा से पार भी पाएंगे
उज्ज्वल भविष्य की स्वर्णदीप्ति में 
कल साथ साथ मुस्काएंगे।

सोमवार, 17 मई 2021

अगर तुम हो वही

 अगर तुम हो वही जो 

लोग कहते हैं कि तुम हो

अगर तुम हो वही ...

अगर तुम हो वही ...!


अगर तुम हो वही 

तो धरा को इसके पापों से छुड़ा कर 

थाम लेते क्यों नही ?

अगर तुम हो वही...


अगर तुम हो वही 

तो लोक क्रंदन को मिटा देते क्यों नही

अगर तुम हो वही ...!


 अगर तुम हो वही

तो शोक में डूबा सारा जहां क्यों है?

बिलखती आत्मा और 

रो रही एक मां क्यों है ?

क्यों जीव हर संतप्त है और

 भय से कांपती हर सांस क्यों है ??

नींद क्यों आंखों से रूठी और

विचलित मन की ये दशा क्यों है ?

अगर तुम हो वही ...!


अगर तुम हो वही 

 तो सांस हर बोझिल है

 कातर ,आर्द्र हो उठा हर स्वर क्यों है ?

 अगर तुम हो समंदर तो 

 हर नदी की ये दशा क्यों है ?

 अगर तुम हो वही ...!


अगर तुम हो वही 

 अगर तुम हो गगन तो 

 पवन की ये दशा क्यों है?

 अगर तुम हो किनारा तो

 भंवर में डूबती हर नाव क्यों है?

 अगर तुम हो वही ...

 अगर तुम हो वही ...

 अगर तुम हो वही ...!!

शतरंज की बिसात

उलझनों की बिसात पर
 चलता हुआ 
 एक मोहरा है जीवन
आशा निराशा के 
सफेद काले खानों में 
चलता दौड़ता फांदता 
कभी ऊंट कभी घोड़ा तो 
कभी प्यादा है जीवन
कभी दूजे से 
कभी खुद से लड़ता 
कभी जीतता जंग तो 
कभी हारता है जीवन 
बादशाहत किसी की 
बनाये रखने को
खुद के लिए मौत को
स्वीकारता है जीवन
उलझनों की बिसात पर खुद से 
हर पल हारता है जीवन

गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

ताबेदार

दवा मरीज़ की होती है हरेक मर्ज की नही
हर किसी को पकड़ता हो ये वो दर्द नही

हम दर्द के साथी हैं अक्सर वो भूल जाते हैं
हर कराहट को छुपा लें हम वो बेदर्द नही

सिसकियां आहें कराहें और वो बिलखते हुए  रिश्ते
उनको बातों में फुसला सकें हम वो सैयाद नही

अक्सर उनके गमों से पलक अपनी भी भीग आती हैं
बोझ उनके गम का उठा लें हमको ये भी अधिकार नही

हर ओर  फैले हैं किस कदर बेबसी के समंदर 
पार कर जाएं ये भंवर हम वो तैराक नही

फिक्रे रोज़ी में असली अश्कों पे 
चढ़ा देते है झूठी तसल्ली का लबादा

सरे रात फिर चैन से सो जाएं हम
उनकी तरह बेगैरत बुत ओ मीनार नही

मन की बात

अश्क लिखते हैं रवां कर के लहू से अपने
चुप रहे तो ज़र्रा ज़र्रा हो के बिखर जाएंगे

हर तरफ शोर के बवंडर लहराते हुए फिरते हैं 
ये समंदर एक सन्नाटे का ले कर के किधर जाएंगे।

सोमवार, 22 मार्च 2021

नन्ही परी

छोटे छोटे सपने लिए नन्हे नन्हे पांवों से
नन्ही कलियों को मूंदे हुए कोई परी आई कहीं
 घर का उजाला थी कुछ आंखों का तारा थी
कुछ लम्हों का गीत लिए संगीत की महफ़िल थी

छुपी हुई आशा का नया झिलमिल दीप लिए
हंसी का सरगम लिए ले के शहनाई कोई

नए सपनों का जगता हुआ नए भावों का सूरज  लिए
नए रिश्तों की डोर लिए  मेरी परी आई यहीं

घर मे उजालों की नई बरसात लिए
हँसी की बूंदों की नई सौगात लिए
खुशी की उमंगों की नई बौछार लिए
बस थाम के उंगली मेरी चल दी मेरी
               नन्ही परी

सोमवार, 22 फ़रवरी 2021

मंज़िलें/सफर/समझौते

खोजते मन्ज़िलों को चले और वो हमसे कुछ दूर चलीं
ज़िन्दगी सफर न होती गर यूँ ही हर मोड़ पे मंज़िल होती।

ये सफर सुहाना हो के न हो समझौतों के तकाज़े हैं ,
हर बुत जो ख्यालों में तराशी हो दरहक़ीक़त  मुकम्मल नही होती।

उसूल दुनिया का है कि चढ़ते सूरज को सलाम करती है ।
यूँ तो छुपते हुए सूरज की भी लाली  कुछ कम नही होती।

कोई क्या दर्द की शिरकत कर ले,कोई क्या आंसुओं को साझा करे
हंसने वालों को आंसुओं की कुछ कदर नही होती।

दिल की ग़मगीनी को दिल के सफ़ों में छुपा कर रखो
हर ज़मीं मज़लूम के आंसुओं से गीली नही होती।

कतरा कतरा बहता हुआ समंदर है
इनकी ज़ुबान को समझो
यूँ तो कतरों की अपनी कोई अहमियत नही होती।
 
मेरे मालिक मेरी आजमाइशों को सुनकर जरा हंस ले तो गुज़र जाऊं मैं
यूँ तो  इंसान के सहने की कोई  सीमा नही होती।