चांदी की पायल भी दे पाते
हाय ये हसरत ही रही
रोटी से उबर न पाए हम
ऐसी ये किस्मत ही रही
काश पसीने से भीगे
तेरे लिलार के स्वेद बिंदु
तेरी ग्रीवा का हार बने
मोती में ढल श्रृंगार बनें।
हसरत ही रही सिंदूर तेरा
स्वर्ण लीक से दप दप दमके
तेरे पग में पायल छनके
तेरे कंगना का गीत बजे
रोटी और छत के बोझ तले
ये स्वप्न मेरे कितना सिसके।
इस ज्वाला के दावानल में
हृदय मेरा धू धू धधके।
पर हाय प्रिये मेरी प्रियतम
मनसे विचार से सुंदरतम
तुम में है धैर्य समंदर का
तुम उच्च सर्वथा नीलगगन
तेरे सामर्थ्य का पासंग नही
मैं पर्वत में भी पाता हूँ
तेरे समान गहराई भी
सागर में ढूँढ़ न पाता हूँ
मुझको ना नैराश्य धरे
तुम कोमल सुर बन जाती हो
अपने सपनो को भूल भाल
मेरा सामर्थ्य बढ़ाती हो
तुम प्राणाधिक प्रिय हो मेरी सखी
तुम मेरा बल हो मेरी सखी
इस जग के ही हैं सब सुख दुख
अपने ही तो हैं सब सुख दुख
इनमें हम साथ निभाएंगे
हर बाधा से पार भी पाएंगे
उज्ज्वल भविष्य की स्वर्णदीप्ति में
कल साथ साथ मुस्काएंगे।
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