अगर तुम हो वही जो
लोग कहते हैं कि तुम हो
अगर तुम हो वही ...
अगर तुम हो वही ...!
अगर तुम हो वही
तो धरा को इसके पापों से छुड़ा कर
थाम लेते क्यों नही ?
अगर तुम हो वही...
अगर तुम हो वही
तो लोक क्रंदन को मिटा देते क्यों नही
अगर तुम हो वही ...!
अगर तुम हो वही
तो शोक में डूबा सारा जहां क्यों है?
बिलखती आत्मा और
रो रही एक मां क्यों है ?
क्यों जीव हर संतप्त है और
भय से कांपती हर सांस क्यों है ??
नींद क्यों आंखों से रूठी और
विचलित मन की ये दशा क्यों है ?
अगर तुम हो वही ...!
अगर तुम हो वही
तो सांस हर बोझिल है
कातर ,आर्द्र हो उठा हर स्वर क्यों है ?
अगर तुम हो समंदर तो
हर नदी की ये दशा क्यों है ?
अगर तुम हो वही ...!
अगर तुम हो वही
अगर तुम हो गगन तो
पवन की ये दशा क्यों है?
अगर तुम हो किनारा तो
भंवर में डूबती हर नाव क्यों है?
अगर तुम हो वही ...
अगर तुम हो वही ...
अगर तुम हो वही ...!!
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