अच्छा है
कुछ कदम की हों दूरियां तो आप बढ़ के मिटा लीजिए
गुलों में सिर्फ खुशबुओं की हो जो दास्तान तो बहुत अच्छा है
साथ गर कांटे भी हों तो चुभन का मिलकर मजा लीजिए
दूर तलक तेरी राहों में सुबहा की ही आहट हो तो बहुत अच्छा है
जो कहीं सफर में रात हो चले तो आसमानों को चादर बना लीजिए
ज़िन्दगी मौसीकीयों की मजलिस हो तो क्या बात है और जो वीराने मिल जाएं कहीं तो साथ महफ़िल सजा लीजिए
कदम कदम पर जो उसकी निगहबानी हो तो बहुत अच्छा है मगर जो दूरी दरमियानी हो तो तसव्वुर में उन निगाहों को बसा लीजिए
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