हमसफ़र हमकदम हमख्याल भी हो तो बहुत अच्छा है
गुलों में सिर्फ खुशबुओं की हो जो दास्तान तो बहुत अच्छा है
दूर तलक तेरी राहों में सुबहा की ही आहट हो तो बहुत अच्छा है
ज़िन्दगी मौसीकीयों की मजलिस हो तो क्या बात है
कदम कदम पर जो उसकी निगहबानी हो तो बहुत अच्छा है

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