खोजते मन्ज़िलों को चले और वो हमसे कुछ दूर चलीं
ज़िन्दगी सफर न होती गर यूँ ही हर मोड़ पे मंज़िल होती।
ये सफर सुहाना हो के न हो समझौतों के तकाज़े हैं ,
हर बुत जो ख्यालों में तराशी हो दरहक़ीक़त मुकम्मल नही होती।
उसूल दुनिया का है कि चढ़ते सूरज को सलाम करती है ।
यूँ तो छुपते हुए सूरज की भी लाली कुछ कम नही होती।
कोई क्या दर्द की शिरकत कर ले,कोई क्या आंसुओं को साझा करे
हंसने वालों को आंसुओं की कुछ कदर नही होती।
दिल की ग़मगीनी को दिल के सफ़ों में छुपा कर रखो
हर ज़मीं मज़लूम के आंसुओं से गीली नही होती।
कतरा कतरा बहता हुआ समंदर है
इनकी ज़ुबान को समझो
यूँ तो कतरों की अपनी कोई अहमियत नही होती।
मेरे मालिक मेरी आजमाइशों को सुनकर जरा हंस ले तो गुज़र जाऊं मैं
यूँ तो इंसान के सहने की कोई सीमा नही होती।
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