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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

गुरुवार, 3 सितंबर 2020

बिखरे पन्ने

लोगों को सांस लेने की कुछ ऐसी लत लगी है
जीना भी भूल जाते हैं साँसों की फिक्र में

वक़्त बदलने को भी वक़्त लगता हैरुत बदलने का इंतज़ार करो
कल सुहानी सुबह भी आएगी,सिर्फ रात ढलने का इंतज़ार करो

कोई अल्बम नहीं है तेरी यादों का साथ मेरे 
वो पल जो तेरे साथ थे मेरी आँखों में रुके हैं

सबको अधूरा छोड़ गया है वो
सबके भीतर कहीं वाबस्ता सा था वो 

 जिस हर्फ बिन कोई जुमला पूरा नही होता
वो था एक लम्हा जिसके बिन दिन अधूरा है

कोई परवाज़ जिसके बिन पूरी नही होती
कुछ पाखियों का ऐसा हौसला था वो

ज़र्रा ज़र्रा बन के बिखर गए किसीकेसपने
कुछ आंखों की उनींदी नींद सा था वो

वक्त की खामोशी ही यह बयां कर रही है कि चोट बहुत जबरदस्त खाई है  हम सबने

मैं गर खामोश रहूं तो मेरा लहज़ा नही ये
वक़्त ऐसा है कि बोलने को दिल नही करता

लम्हात  जो जी लिए ज़िन्दगी बन जाते हैं
फ़क़त सपने ठहरे जो सिर्फ ख्यालों में रहे

नही रहने पे ज़िन्दगी में नक्श उसके बिखरे हुए मिले
जिसकी परछाईं भी कभी मेरे रास्तों में शामिल नही दिखी




2 टिप्‍पणियां:

Santwana mishra ने कहा…

बेहद खूबसूरत और अर्थपूर्ण रचना है।

Kavita ने कहा…

थैंक्स सांत्वना