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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

शनिवार, 31 अक्टूबर 2015

--आज तू कहाँ है ?


वो काशी की अस्सी
वो अस्सी के घाट
वो घाटों की सीढ़ी
 वो सीढ़ी से सट के बहती
 नदिया की लहरें -
आज भी;
 ढूंढती हैं ,पहचानती है मुझको ;
तेरे ही नाम से ,
सूंघती हैं स्नेह से माथ मेरा
 और पूछती हैं ;बिटिया
अब तेरी माँ कहाँ है --?



क्या बताऊँ मैं उनको
 कि क्या समझाऊँ -तू कहाँ है ?
कभी यूँ ही रातों में
चिहुंक कर -
जग जाती हूँ जब भी
 दुनिया की उलझन से
 थक जाती हूँ जब भी ;
उलझ जाऊं कहीं
या डर जाती हूँ जब भी
हौले से ;
महसूस करती हूँ तुझको
 अंदर किसी कोने में
 और पूछती हूँ खुद से
तू कहाँ है माँ --?
आज तू याद आती है बहुत
 धीरे से कानो में कह जा माँ --
--आज तू कहाँ है ?



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