वो काशी की अस्सी
वो अस्सी के घाट
वो घाटों की सीढ़ी
वो सीढ़ी से सट के बहती
नदिया की लहरें -
आज भी;
ढूंढती हैं ,पहचानती है मुझको ;
तेरे ही नाम से ,
सूंघती हैं स्नेह से माथ मेरा
और पूछती हैं ;बिटिया
अब तेरी माँ कहाँ है --?
क्या बताऊँ मैं उनको
कि क्या समझाऊँ -तू कहाँ है ?
कभी यूँ ही रातों में
चिहुंक कर -
जग जाती हूँ जब भी
दुनिया की उलझन से
थक जाती हूँ जब भी ;
उलझ जाऊं कहीं
या डर जाती हूँ जब भी
हौले से ;
महसूस करती हूँ तुझको
अंदर किसी कोने में
और पूछती हूँ खुद से
तू कहाँ है माँ --?
आज तू याद आती है बहुत
धीरे से कानो में कह जा माँ --
--आज तू कहाँ है ?
कि क्या समझाऊँ -तू कहाँ है ?
कभी यूँ ही रातों में
चिहुंक कर -
जग जाती हूँ जब भी
दुनिया की उलझन से
थक जाती हूँ जब भी ;
उलझ जाऊं कहीं
या डर जाती हूँ जब भी
हौले से ;
महसूस करती हूँ तुझको
अंदर किसी कोने में
और पूछती हूँ खुद से
तू कहाँ है माँ --?
आज तू याद आती है बहुत
धीरे से कानो में कह जा माँ --
--आज तू कहाँ है ?
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