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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

सोमवार, 26 अक्टूबर 2015

प्रतिरूप--

बेटियां क्या हैं माँ के लिए --

एक बीता हुआ सा बचपन हैं
एक गुजर गया वो सावन हैं
माघ महीने की कुनकुनी सी धूप हैं
बेटियां बस माँ का ही प्रतिरूप हैं

कुछ जी लिया वो जीवन हैं
कुछ छूट गयीं वो आस हैं
शरद पूर्णिमा की पवित्र चांदनी है
तो कभी बैसाख में फागुनी बयार हैं

अपने जीवन के फलसफे हैं वो
अपने अनुभवों का निचोड़ हैं
जो जी लिए खुशी के वो लम्हें हैं
माँ के दिल की बेटियां तो धड़कन है

कहीं माज़ी की गलतियों के
सीखे कुछ सबक भी हैं
कुछ तीखे कुछ कड़वे
यादों के.अहसासों के ' घूँट भी हैं

हम भी मुकम्मल नहीं हैं न थे कभी
तंज़ उनके हमें सिखाते हैं
 बात कोई कहीं जो अखर जाये
अपने बुजुर्गों की याद भी दिलाते हैं

उनकी बातें कहीं जो गड़ती हैं
तो अपनी कही भी याद आती है
और कल की किसी बेरुखी पे आज
अफ़सोस में आँखें भी भीग जाती हैं

बेटियां क्या हैं माँ के लिए --
साध हैं आस हैं सबक हैं प्यास हैं
क्या ना कहें क्या-क्या कहें--
बेटियां बस अपना ही एक प्रतिरूप हैं ll

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