Featured post

यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

गुरुवार, 15 अक्टूबर 2015

बेफिक्र हँसी--

हंसी तो आती है अब भी मगर, 
 दिल खोल के हँसते हैं अब भी मगर
क्या बात है के ताजादम नही होते,
 क्या बात है वो रौनक अब नहीं आती

कितने बोझों तले दबी होती है,
कितने शिकवों की नज़र होती है ,
हर दिल को छू के गुज़र जाए जो ,
 वो बे फ़िक्र हंसी अब नहीं आती l

इक उम्र जो छू के गुजरती है ,
साथ ले जाती है वो गुल की रौनक ,
कहने को तो कली खिलती है ,
पर ओस की बूँद एक उड़ जाती है l

बचपन तेरी यादों का क्या कहना,
बचपन तेरी मासूमियत को सलाम
झरनो सी फूट कर जो बहती थी ,

वो बेफिक्र हंसी अब क्यों नहीं आती

कोई टिप्पणी नहीं: