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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

गुरुवार, 8 अक्टूबर 2015

बहुत तन्हा हूँ मैं ;

आज आवाज़ न दो कोई मुझे
बहुत तन्हा हूँ मैं ;
अपनी ही परछाइयोंके साथ
हल्की सी आहट भी
डरा देती है मुझको
कि आने वाला कोई -
--अपना न हो'
डर ;अब अँधेरों से नही लगता ;
उजालों की आमद से लगता है;
अँधेरों में अपना साया भी .
साथी ही सा लगता है ,
कहते हैं, जब दर्द बढ़ता है
गम की दवा बन जाता है ;
यूं ही खामोशिया तनहाइयाँ
अक्सर मुझसे बातें करती हैं .
आज रहने दो बस
 अकेला मुझे
मेरी परछाईयों केसाथ '
आज ;आवाज़ ना दो कोई मुझको
--आज बहुत तन्हा हूँ मैं

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