आज आवाज़ न दो कोई मुझे
बहुत तन्हा हूँ मैं ;
अपनी ही परछाइयोंके साथ
हल्की सी आहट भी
डरा देती है मुझको
कि आने वाला कोई -
--अपना न हो'
डर ;अब अँधेरों से नही लगता ;
उजालों की आमद से लगता है;
अँधेरों में अपना साया भी .
साथी ही सा लगता है ,
कहते हैं, जब दर्द बढ़ता है
गम की दवा बन जाता है ;
यूं ही खामोशिया तनहाइयाँ
अक्सर मुझसे बातें करती हैं .
आज रहने दो बस
अकेला मुझे
मेरी परछाईयों केसाथ '
आज ;आवाज़ ना दो कोई मुझको
--आज बहुत तन्हा हूँ मैं
बहुत तन्हा हूँ मैं ;
अपनी ही परछाइयोंके साथ
हल्की सी आहट भी
डरा देती है मुझको
कि आने वाला कोई -
--अपना न हो'
डर ;अब अँधेरों से नही लगता ;
उजालों की आमद से लगता है;
अँधेरों में अपना साया भी .
साथी ही सा लगता है ,
कहते हैं, जब दर्द बढ़ता है
गम की दवा बन जाता है ;
यूं ही खामोशिया तनहाइयाँ
अक्सर मुझसे बातें करती हैं .
आज रहने दो बस
अकेला मुझे
मेरी परछाईयों केसाथ '
आज ;आवाज़ ना दो कोई मुझको
--आज बहुत तन्हा हूँ मैं
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें