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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

गुरुवार, 5 नवंबर 2015

शहर -ए-बनारस


दिन रात चलता ये शहर, सदियों से जगता ये शहर ,
गुमनाम गलियों का ये शहर ,हर जन का प्यारा ये शहर l

 ये गंगा किनारे बसता शहर,ये नदिया के धारों पे तिरता शहर ,
हर सुबहा से पहले जगता शहर ,कब है ये सोता मेरा शहर ?

निःशब्द कोलाहल से पटता शहर ,है बाबा का प्यारा ये हँसता शहर
मरने वालों को बैकुंठ देता शहर, है महाकाल का ये पावन शहर l

माँ गंगा किनारे का अनुपम शहर, ज्ञान का पुंज सदियों से अपना शहर
हर सुबह का सफर है ये अपना शहर, हर सहर की सहर है ये अपना शहर l



चौराहो औ गलियों में बसता शहर ,कचौरी जलेबी से भीना शहर
गंग जमुनी तहज़ीब का नज़ारा शहर ,हर शहर से है न्यारा बनारस शहर l

फोटोज़ साभार 'बनारस समाचार' से

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