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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

रविवार, 11 अक्टूबर 2015

तलाश-एक दौर की

पुरानी यादों में नए ज़माने के अक्स ढूढ़ते हैं
की हम झुर्रियों में खोये वो नक्श ढूंढते हैं
गुज़र चूका  जिन राहों पे इक उम्र का कारवां
मंज़िलों से पलट कर उन रास्तों के निशाँ ढूंढते हैं

खत कुछ बिन मज़्मून ,बिना नाम के जाने कहाँ पहुंचे
हम आज भी बेखबर किसी खत में अपना नाम ढूंढते हैं
कभी वक़्त में कभी रेत में कल जो बिखर के  रह गए
आज उन  बेखबर से लम्हों  की खोयी पहचान ढूंढते हैं

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