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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

सोमवार, 5 अक्टूबर 2015

माँ के नाम पर

जलती हुई काशी धधकती हुई कशी
 और कराहती दादरी
दो माताएं और उनके आंसू पोंछने को
खून से सने वस्त्र लिए पुत्र
वाह रे प्रेम ,वाह री भावनाएं
गंगा माँ है;  हमारी है ;
चाहे गन्दा करें ,मैला करें ,
लाशों से पाट दें या के
खून की धाराएं बहा दें --हक़  है
तुम होते  भी  कौन  हो
 पूछने वाले, कहने  वाले, टोकने  वाले
गौऊ माता है
अधिकार हमारा है -मारेंगे नहीं
चाहे सडकों पे खुला छोड़ दें
 चाहे उसकी संतति को भूखा मार दें
सारा दूध निचोड़ के
तिजोरी भर लें
चाहे पीछे से कसाई को सौंप दें
 मारेंगे नहीं अपने हाथों से- वादा है
कसाई खाने चलाने देंगे
 विदेशों को जाने देंगे
पर तुम जो खाओगे तो ये अधर्म है
खाना है तो पांचसितारा में खाओ
अपने घर में तो हम न खाने देंगे
इन सारे किस्सों में एक और भी है- माँ
उपेक्षित अपमानित पीड़ित दुखित
भारत माँ -हर बार
 तलवार की धार से चीरा है सीना उसका
हर बार टुकड़े किये हैं उसके
कर डालो- फिर कर डालो
भूत, वर्तमान ,भविष्य; कुछ भी अनदेखा नहीं है तुमसे
आगत का भी अंदेशा है तुमको
फिर भी बढे जाओगे -मदहोश की तरह
उनकी राहों पे ,जो खड़े हैं
उस छोर पे खंजर लिए हुए
आगत भी छुपा नहीं तुमसे
फिर भी कर डालो -टुकड़े कर डालो
माँके -माँ के लिए माँ के नाम पर

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