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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

शनिवार, 4 जुलाई 2015

आज़ाद नहीं --


आज भी आज़ाद नहीं मैं
दुआओं से ख्यालों से सपनों से
उनींदी आँखों में
नींद अब भी नहीं आती . .
बसेरा है कुछ यादों
कुछ ख्यालों का
आज़ाद नहीं अब भी मैं कुछ ख्यालों से
रिश्ते सब ख़त्म हुए
बातों और नज़ारों के
अब भी रास्तों में नज़रें
बिछी सी रहती हैं
यूँ ही बेमानी सी हरकतें
ये बचकानापन …….
यूँ ही बंद किवाड़ों की ओट से
कभी सांकलें खोल के
कभी नज़र बचा के
कभी नज़र चुरा के
गलियों में झाँक लेना
कहीं कोई खड़ा तो नही
इंतज़ार में
कोई आया तो नहीं
कोई ख्वाब कहीं
मेरा मुंतज़िर तो  नहीं
अब भी आज़ाद नहीं मैं रिश्तों से
तुम से खुद से ….
चाहा तो बहुत था
सोचा भी बहुत था
कि- तोडना क्या मुश्किल है ?
खोलना क्या मुश्किल है ?
बंधनो को ,जो जुड़े ही नहीं
जो बंधे ही नहीं
जो बने ही नहीं
पर   आज़ाद  नहीं आज भी
मैं इन बंधनो से
तुम न हो तो क्या
आज भी मैं मुंतज़िर हूँ
तुम्हारे लिए
आज भी मेरे ख़्वाबों में
तेरी परछाईं है
सपने हैं कुछ टूटे टूटे से
और हकीकतों की तेज रौशनी में
आँखें चुंधिया सी जाती हैं
पलक झपती नहीं
जानते हो न -तेज रौशनी में
नींद मुझे आती नहीं
आँखें गड़ती हैं
कड़ुआती हैं
पनियाती हैं
धुंवा कसैला सा
एक दम घोंटू अँधेरा  सा
घेर लेता है चारों तरफ
घबरा के छुप जाऊं कहाँ
कोई पनाह तो नहीं
आज भी आज़ाद नहीं
मैं उन सपनो से
इन हक़ीक़तों से …..
होना चाहती तो हूँ
सोना चाहती तो हूँ …

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