रूमानियत न सजी जिन आंखों में कभी
वो ख्वाब जन्नत के दिखाए तो हंसी आती है
रिश्ते महज़ ज़िस्म से निभाये हों जिसने
बात वो इश्क की करे तो हंसी आती है
बांहे डाले बांहों में न चला हो कोई दो कदम
वो कहे कभी जो हमसफ़र तो हंसी आती है
मशवरों में जिसके कभी न हो मेरा शुमार
राह भटकने पे कहे रहबर तो हंसी आती है
जिसने कोशिश भी नही की मुझको पढ़ने की
खुद को कहे खुली किताब तो हंसी आती है
भटकता जो रहा उम्र भर दूसरी ही गलियों में
अपना घर ढूंढे जो चमन में तो हंसी आती है।
वो ख्वाब जन्नत के दिखाए तो हंसी आती है
रिश्ते महज़ ज़िस्म से निभाये हों जिसने
बात वो इश्क की करे तो हंसी आती है
बांहे डाले बांहों में न चला हो कोई दो कदम
वो कहे कभी जो हमसफ़र तो हंसी आती है
मशवरों में जिसके कभी न हो मेरा शुमार
राह भटकने पे कहे रहबर तो हंसी आती है
जिसने कोशिश भी नही की मुझको पढ़ने की
खुद को कहे खुली किताब तो हंसी आती है
भटकता जो रहा उम्र भर दूसरी ही गलियों में
अपना घर ढूंढे जो चमन में तो हंसी आती है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें