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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

शुक्रवार, 23 अगस्त 2019

कल कोई ख्वाब सा

कल कोई ख्वाब सा देखा था तुम्हें--

अपनी ख्वाहिशों के झोंके पे
चाँद रातों में सिमटे हुए
इक नदी से सट के
किसी कश्ती में बहते हुए....

चाँद भी इक गवाह मेरा है
और सूनी रातों की रौशनाई भी
भीगी रातों में इक ग़ज़ल कह लूँ
साथ साये भी हैं,परछाईं भी

दूर तक फैले हुए थे सन्नाटे
पर कहीं एक चाप तेरी थी
गीत था फ़िज़ाओं पे बहता सा
तेरी महक में घुलती हवाएं थीं

कोई साया सा था वीराने में
कोई खोई ग़ज़ल थी बहती हुई
कुछ बारिशों की आहट थी
किरन एक लहरों पे तिरतीे हुई

कुछ नीम से अंधेरों में
कुछ रौशनी की झुरमुट में
इक चांदनी में घुलता हुआ
दूर कश्ती में किसी साये सा --

कल रात देखा था तुम्हे
मैंने किसी  ख्वाब सा

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