ज्यूँ छलक उठा मन में सावन
ज्यूँ भीगी भीगी बहे पवन
ये मनभावन सी हंसी कहीं
मुझ पर करती है सम्मोहन
चितचोर हंसी मद्धम मद्धम
ये धूप खिली पत्तों पे छन-छन
ये आस उजास के दो दीपक
दें प्राण सखा को नवजीवन
खिलती बगिया खिलता उपवन
बहती बयार और नील गगन
चंचल चितवन में परिभाषित
कल कल निनाद करता जीवन
नश्वर में ईश्वर का हो दर्शन
इन मृदु नयनों में ही सम्भव है
इस बालरूप पर मानव क्या
ईश्वर खुद भी सम्मोहित है
ज्यूँ भीगी भीगी बहे पवन
ये मनभावन सी हंसी कहीं
मुझ पर करती है सम्मोहन
चितचोर हंसी मद्धम मद्धम
ये धूप खिली पत्तों पे छन-छन
ये आस उजास के दो दीपक
दें प्राण सखा को नवजीवन
खिलती बगिया खिलता उपवन
बहती बयार और नील गगन
चंचल चितवन में परिभाषित
कल कल निनाद करता जीवन
नश्वर में ईश्वर का हो दर्शन
इन मृदु नयनों में ही सम्भव है
इस बालरूप पर मानव क्या
ईश्वर खुद भी सम्मोहित है


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