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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

गुरुवार, 1 अगस्त 2019

ज्यूँ छलक उठा मन में सावन
ज्यूँ भीगी भीगी बहे पवन
ये मनभावन सी हंसी कहीं
मुझ पर करती है सम्मोहन

चितचोर हंसी मद्धम मद्धम
ये धूप खिली पत्तों पे छन-छन
ये आस उजास के दो दीपक
दें प्राण सखा को नवजीवन

खिलती बगिया खिलता उपवन
बहती बयार और नील गगन
चंचल चितवन में परिभाषित
कल कल निनाद करता जीवन


नश्वर में ईश्वर  का हो दर्शन
इन मृदु नयनों में ही सम्भव है
इस बालरूप पर मानव क्या
ईश्वर खुद भी सम्मोहित है

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