यही तो है वस्तुस्थिति pls share
हमने पीपल आम को पूजा
बुत में हमने मिट्टी को पूजा
अग्नि हवा को हमने पूजा
हमने पंचतत्व को पूजा
पर जीवन की आपाधापी में
हम मूल तत्व को भूल गए
जीवन की पूजा करते रहे
और अर्थ समझने भूल गए
जब तक हम गुरु कुल में पले
जीवन से जीवन की रीत गढ़ी
भिक्षाटन से देशाटन से गुरु वंदन से
प्रश्नोत्तर की एक भीति गढ़ी
क्या सही गलत जाना समझा
उसको पाप पुण्य मे गूंथ दिया
जन सामान्य करे पालन कुछ ऐसी नीति का सृजन किया
पर धीरे धीरे फिर ह्रास हुआ हम प्रश्न महत्ता भूल गए
जो कहीं समझ मे ना आये
गुरु भी समझाना भूल गए
हमने नदिया नाले छोड़े
हमने जीवन धारे छोड़े
हमने जंगल वन उपवन छोड़े
हमने पर्वत प्यारे छोड़े
हमने पाठ तो सारे रट डाले
बस अर्थ समझना भूल गए
पर्वत पीपल जल आग हवा
को पूजते क्यों हैं भूल गए
न खुद समझा न समझा ही सके
अपने बच्चों को न बता ही सके
जल जीवन है समझाते रहे
पर बावड़ियों को पटवाते रहे
बचपन ने मन से प्रश्न किया
निर्जीव है जल थल और प्रकृति
जो स्वयम इशारे पे चलती
उसको हम अब भी क्यों पूजें
ये सहज बात मन मे आती
अनपढ़ लोगों ने बैठ के कुछ अनहोनी पद्धति बनवाई
डर लगता था जिन चीजों से उनकी ही पूजा करवाई
कुछ यही सोच जानी उभरी
जीवन की कुछ पद्धतियों में
खुद को औरों से श्रेष्ठ समझ
उलझे विज्ञान प्रयत्नों में
नए नए सब विश्लेषण
नए नए विज्ञान सृजन
जीवन जल सब कुछ भूल भाल
किया प्रकृति का भरसक दोहन
जंगल पर जंगल कटवाए
वन्यजीव भाग भीतर आये
तब भी तो न अपनी आंख खुली
थी अनाचार की हवा चली
अब अंत अंत चिल्लाते हैं
अब संचय की गाथा गाते हैं
पर अब भी हैं हम महामूढ़
जो अंत देख न पाते हैं
जलसंचय और वृक्षारोपन पर
जोर बहुत है पर फिर भी
कटवाने चले जंगल के जंगल
की विकास की रेल चले
(54000मैंग्रोव ट्रीज कटेंगे बुलेट ट्रेन चलाने के लिए मुंबई औरगुजरात केबीच )(2030तक पृथ्वी ऐसी स्थिति में पहुंच जाएगी जहां से वापसी का स्कोप नही अंत ही नियति होगी।मात्र 11 साल और क्लाइमेट इमरजेंसी की जगह बुलेट ट्रेन हमारी प्रायोरिटी,पॉलीथिन बैग न बन्द हो हमारी प्रायोरिटी)
हमने पीपल आम को पूजा
बुत में हमने मिट्टी को पूजा
अग्नि हवा को हमने पूजा
हमने पंचतत्व को पूजा
पर जीवन की आपाधापी में
हम मूल तत्व को भूल गए
जीवन की पूजा करते रहे
और अर्थ समझने भूल गए
जब तक हम गुरु कुल में पले
जीवन से जीवन की रीत गढ़ी
भिक्षाटन से देशाटन से गुरु वंदन से
प्रश्नोत्तर की एक भीति गढ़ी
क्या सही गलत जाना समझा
उसको पाप पुण्य मे गूंथ दिया
जन सामान्य करे पालन कुछ ऐसी नीति का सृजन किया
पर धीरे धीरे फिर ह्रास हुआ हम प्रश्न महत्ता भूल गए
जो कहीं समझ मे ना आये
गुरु भी समझाना भूल गए
हमने नदिया नाले छोड़े
हमने जीवन धारे छोड़े
हमने जंगल वन उपवन छोड़े
हमने पर्वत प्यारे छोड़े
हमने पाठ तो सारे रट डाले
बस अर्थ समझना भूल गए
पर्वत पीपल जल आग हवा
को पूजते क्यों हैं भूल गए
न खुद समझा न समझा ही सके
अपने बच्चों को न बता ही सके
जल जीवन है समझाते रहे
पर बावड़ियों को पटवाते रहे
बचपन ने मन से प्रश्न किया
निर्जीव है जल थल और प्रकृति
जो स्वयम इशारे पे चलती
उसको हम अब भी क्यों पूजें
ये सहज बात मन मे आती
अनपढ़ लोगों ने बैठ के कुछ अनहोनी पद्धति बनवाई
डर लगता था जिन चीजों से उनकी ही पूजा करवाई
कुछ यही सोच जानी उभरी
जीवन की कुछ पद्धतियों में
खुद को औरों से श्रेष्ठ समझ
उलझे विज्ञान प्रयत्नों में
नए नए सब विश्लेषण
नए नए विज्ञान सृजन
जीवन जल सब कुछ भूल भाल
किया प्रकृति का भरसक दोहन
जंगल पर जंगल कटवाए
वन्यजीव भाग भीतर आये
तब भी तो न अपनी आंख खुली
थी अनाचार की हवा चली
अब अंत अंत चिल्लाते हैं
अब संचय की गाथा गाते हैं
पर अब भी हैं हम महामूढ़
जो अंत देख न पाते हैं
जलसंचय और वृक्षारोपन पर
जोर बहुत है पर फिर भी
कटवाने चले जंगल के जंगल
की विकास की रेल चले
(54000मैंग्रोव ट्रीज कटेंगे बुलेट ट्रेन चलाने के लिए मुंबई औरगुजरात केबीच )(2030तक पृथ्वी ऐसी स्थिति में पहुंच जाएगी जहां से वापसी का स्कोप नही अंत ही नियति होगी।मात्र 11 साल और क्लाइमेट इमरजेंसी की जगह बुलेट ट्रेन हमारी प्रायोरिटी,पॉलीथिन बैग न बन्द हो हमारी प्रायोरिटी)
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