इक बंद तिज़ोरी सपनो की
जैसे गलती से है खुल बैठी,दो चार यहाँ ,दो चार वहाँ
हर कोने से ,हर नुक्कड़ से
कुछ लुके छिपे कुछ भूले से
कुछ आंसू में धुंधलाये से,कुछ बोझिल तेरी यादों से
कुछ हैं मुस्काते यादों में
कुछ बांह पसारे आये हैंll
कैसे इनको अब बाँध के मैं
पिंजरे में फिर से बंद करूँ,घुट जाएँ इनकी सांसें तो
क्या हमखुश भी रह पाएंगे?
चुन चुन कर अबइन यादों को
इन सपनो को,उन वादों को
इक
चूनर सी सिलवाई है
अब
डाल के इसको चेहरे पर
उनकी छाया में चलते हैं
क्या हुआ अगर ये मिल न सके
क्या हुआ अगर वो मिल न सके ll

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