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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

बुधवार, 19 अगस्त 2015

नींद-

इक नींद सी आती रही
   इक ख्वाब सा जगता रहा
          नन्हा सा था कोई लम्हा
पाँव पाँव चलता रहा
      तपती रही धुप ज़िंदगी की
          छाँव सपनो की मरहम लगाती रही
                    अब नींद अधूरी है और ख्वाब -
आतिशों से;चमक कर बुझ चुके है.
          आँख खोलने से डरते हैं
          दुनियावी हकीकत में  ;
      समझ में सब कुछ आता है
     मगर फिर भी नहीं आता
   जीना चाहते हैं हम ;
मगर फिर भी जिया नहीं जाता

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