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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

दरमियान


चलो कहीं दूर चल के मिलते हैं
उजालों और अंधेरों के दर्मियां
शाम और  रात के बीच कहीं
झुटपुटा सा अन्धकार हो
हलकी सी रोशनी हो
आदर्शों के इश्तिहार न हों
वर्जनाओं की  दीवार न हो
ना तुम  हो, न मैं हूँ;
 न दुनिया ही  के झमेले हों
न पैरों में हो आत्म मंथन की जंजीर
क्या सही क्या गलत की उलझनें
बस मासूम सा एक प्यार हो
जो हो न सका कभी वो इज़हार हो
तुम्हारी बाहों में मैं सुकून पा जाऊं
मेरी आँखों में तुम अपनी वफ़ा पढ़ लो
कोई तो ऐसी जमीन हो आसमान हो
जहाँ तुझसे आके मिलूं मैं
और फिर तुझमें ही फ़ना हो जाऊं

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