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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2019

The Loss--क्षति

माँ को खोने की पीड़ा और संताप समझा जा सकता है कुछ समझाया नही जा सकता...

 कुछ पीड़ाएं अंदर उतर जाती हैं
हमारे अन्तस् का हिस्सा ही बन जाती हैं
मानो तीखी छुरी सी छीले जाती हैं या
पिघले सीसे सी भीतर ही जलाती हैं
एक आर्तनाद जो मुखर नही होता
आंखें बरस के भी सूख चलती हैं
सावन नही आता
मन नही हरियाता
बचपन उसके साथ चला जाता है
फिर वापस नही आता
यही पीड़ा अनकही
यही दुख सर्वज्ञ
किसको कहूँ किसको सुनाऊं
खो चुकी हूं माँ को
कहाँ से पाऊं,
कहाँ से पाऊं.....??

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