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आज ही क्यों --? कहा किसी ने -
मैंने भी सोचा- आज ही क्यों?
बहुत सोचा ,
जेवर की तुलना बंधन से क्यों ?
अब क्यों ,आज क्यों ?
जेवर कोई बंधन तो नहीं शौक है .
कल था ,आज भी है l
खाली औरत थोड़े ही न पहनती है जेवर ,
बड़े आदमियों के चोंचले हैं सब l
पहले राजे महराजे नहीं पहनते थे क्या ?
धनिक सेठ साहूकार नहीं पहनते थे क्या?
आज भी पहनते हैं. बहुतेरे ;
औरते ,लड़कियां ,गांवों की, मॉडर्न भी ;
नहीं पहनती क्या ?
नहीं सजती क्या ?
अब क्यों...... ?
अब तो आजाद हैं ,स्वच्छंद हैं ,
अपने मन की हो गई हैं l
अपने पैरों पर खड़ी हैं l
अपने परों को फैलाना सीख गई हैं l
फिर क्यों, फिर भी क्यों ;?
सजती हैं ,संवरती हैं ,
गहने भी पहनती हैं
भला अब क्यों ?,
सजना तो शौक है अपनी खुशी के लिए ;
जहर क्यों बोते हो ,जेवर को भला बेड़ी क्यों कहते हो ?
सच कहा ;
सजना तो शौक है ,
अपने लिए ,
पर वही शौक
इक नाम से जुड़ जाए तो ?
वही शौक इक मुहर बन जाये तो?
वही शौक रेख में बांध जाये तो?
वही शौक एक प्रतिस्पर्धा बन जाये ,
किसी एक को लुभाने ,लुभा कर रखने की
मजबूरी बन जाये तो ?
एक अस्तित्व का प्रश्न बन जाये तो ?
जहाँ खुद का अस्तित्व भी प्रश्नचिन्ह बन जाये तो?
और इन सब से ऊपर भी तो एक" तो है --
अगर वो एक न रहे तो -----??
क्या तब भी --
श्रृंगार एक शौक है
जेवर ,सजना सब अपने लिए है
तो एक पल में श्रृंगार पाप क्यों ?
जेवर नाग क्यों ?
दंश क्यों दुनिया के सीने पर ?
जेवर ,श्रृंगार तो इच्छा की बात है
जेवर ,श्रृंगार : जेल नहीं बेड़ी नहीं
बांध रखने की जंजीर नहीं
फिर अचानक ?
क्या हुआ ?
कोई गया ,मेरा अपना गया
दुःख है पर मैं जिन्दा हूँ
मेरा स्वत्व जिन्दा
क्या मर जाती हैं इच्छाएं भी ,
किसी एक के साथ ?
क्या मर जाना चाहिए उन्हें किसी एक के साथ ?
या मार दिया जाता है उन्हें किसी अजन्मी कन्या भ्रूण की तरह
उपेक्षा और तिरस्कार के हथियार से प्रहार से
छीन ली जाती है उनसे जीने की ललक
सजने और श्रृंगार के अधिकार
अभिसार की चाह
पाप और परलोक के भंवर
सब उसके लिए
इहलोक और उसके सुख उनके लिए
फिर भी --जेवर
नकेल नहीं श्रृंगार है
जिस पर हम सबका समान अधिकार है ---
ठीक है ----!!
आज ही क्यों --? कहा किसी ने -
मैंने भी सोचा- आज ही क्यों?
बहुत सोचा ,
जेवर की तुलना बंधन से क्यों ?
अब क्यों ,आज क्यों ?
जेवर कोई बंधन तो नहीं शौक है .
कल था ,आज भी है l
खाली औरत थोड़े ही न पहनती है जेवर ,
बड़े आदमियों के चोंचले हैं सब l
पहले राजे महराजे नहीं पहनते थे क्या ?
धनिक सेठ साहूकार नहीं पहनते थे क्या?
आज भी पहनते हैं. बहुतेरे ;
औरते ,लड़कियां ,गांवों की, मॉडर्न भी ;
नहीं पहनती क्या ?
नहीं सजती क्या ?
अब क्यों...... ?
अब तो आजाद हैं ,स्वच्छंद हैं ,
अपने मन की हो गई हैं l
अपने पैरों पर खड़ी हैं l
अपने परों को फैलाना सीख गई हैं l
फिर क्यों, फिर भी क्यों ;?
सजती हैं ,संवरती हैं ,
गहने भी पहनती हैं
भला अब क्यों ?,
सजना तो शौक है अपनी खुशी के लिए ;
जहर क्यों बोते हो ,जेवर को भला बेड़ी क्यों कहते हो ?
सच कहा ;
सजना तो शौक है ,
अपने लिए ,
पर वही शौक
इक नाम से जुड़ जाए तो ?
वही शौक इक मुहर बन जाये तो?
वही शौक रेख में बांध जाये तो?
वही शौक एक प्रतिस्पर्धा बन जाये ,
किसी एक को लुभाने ,लुभा कर रखने की
मजबूरी बन जाये तो ?
एक अस्तित्व का प्रश्न बन जाये तो ?
जहाँ खुद का अस्तित्व भी प्रश्नचिन्ह बन जाये तो?
और इन सब से ऊपर भी तो एक" तो है --
अगर वो एक न रहे तो -----??
क्या तब भी --
श्रृंगार एक शौक है
जेवर ,सजना सब अपने लिए है
तो एक पल में श्रृंगार पाप क्यों ?
जेवर नाग क्यों ?
दंश क्यों दुनिया के सीने पर ?
जेवर ,श्रृंगार तो इच्छा की बात है
जेवर ,श्रृंगार : जेल नहीं बेड़ी नहीं
बांध रखने की जंजीर नहीं
फिर अचानक ?
क्या हुआ ?
कोई गया ,मेरा अपना गया
दुःख है पर मैं जिन्दा हूँ
मेरा स्वत्व जिन्दा
क्या मर जाती हैं इच्छाएं भी ,
किसी एक के साथ ?
क्या मर जाना चाहिए उन्हें किसी एक के साथ ?
या मार दिया जाता है उन्हें किसी अजन्मी कन्या भ्रूण की तरह
उपेक्षा और तिरस्कार के हथियार से प्रहार से
छीन ली जाती है उनसे जीने की ललक
सजने और श्रृंगार के अधिकार
अभिसार की चाह
पाप और परलोक के भंवर
सब उसके लिए
इहलोक और उसके सुख उनके लिए
फिर भी --जेवर
नकेल नहीं श्रृंगार है
जिस पर हम सबका समान अधिकार है ---
ठीक है ----!!
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