कलकल बहते पानी को बदलते बर्फ में देखा है
तमाम दिल के रिश्तों को ज़र्रों में बिखरते देखा है
तमाम दिल के रिश्तों को ज़र्रों में बिखरते देखा है
मुकम्मल इक कहानी को बेनाम ही बिकते देखा है
चांदी की चमकती रात को अमावस मे ढलते देखा है
चांदी की चमकती रात को अमावस मे ढलते देखा है
मन्दिर की इक मूरत को पैरों में रुलते देखा है
हंसती खिलती कलियों को कोठों पे सिसकते देखा है
हंसती खिलती कलियों को कोठों पे सिसकते देखा है
सपनों की दहलीज पे भी माजी की छाया लहराई
खुशियों की इस बारिश में मन को बंजर सा देखा है
खुशियों की इस बारिश में मन को बंजर सा देखा है
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