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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

रविवार, 7 अप्रैल 2019

चंद शेर


अपनी उतरन भी देते हैं तो अहसान की तरह
वो जान भी दे दें तो फ़र्ज़ उनका है


बड़ी खूबसूरत ये हिमाकत की है
के आज तूने खुद से मोहब्बत की है
बड़ा मुख्तसर सा है ये अंदाज़ जिये जाने का
तूफां से गुजरने की हमने भी  हिमाकत की है

उभरते नहीं कागजों पर तल्ख ज़ज़्बातों के हरूफ
एक पूरी किताब  मेरी   बन्द आंखों में है

तारीखों की वफ़ा देखें या अपनी उनसे बेवफाई
वो आती हैं जरूर और हम उनसे रूबरू नही होते

बहाना तक़दीर का ना होता तो जाने क्या हो गया होता
अपनी गलतियों पे शर्मिंदा हो कर इन्सां मर गया होता


आप बस जलती हूंई बहती हुई बूंदों की रवानी देखें
शमा बुझने को है सिर्फ वक़्त की मेहरबानी देखें

बेखौफ उम्र के सैलाबों के सीने पर ,मौजों पर तैरे
अब ढलती उतरती लहरों में कदमों की निशानी क्या ढूंढें

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

भई वाह

Kavita ने कहा…

शुक्रिया