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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

शनिवार, 23 मार्च 2019

रूढ़ियाँ

कोमल गातों को देखा है
नवजीवन के पुंज सरीखे
कितनी कलियाँ कितने कंछे।।

और राह चलो तो मिल जाती हैं
ढेरों सूखी बिखरी डाठें
मृतप्राय टूटती ;
मगर फिर भीऐंठी अकड़ी सी,
--रूढ़ियों जैसी ।।

मिट जाना ही श्रेयस्कर है
उस धर्मध्वजा का ,
जो मनुज मात्र को समझ सके ना
"उसका" अभिनन्दन
जो मनुज मात्र का , जीव मात्र का,
कर  सके ना वन्दन।।

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