Featured post

यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

गुरुवार, 21 मार्च 2019

कालचक्र


आभासी है ये कालचक्र
जुड़ी हुई है कहीं और नियति

धागे से कठपुतली के
हैं छद्मवेश ,हैं छद्मनाम
कहीं और नियति कहीं और धाम

है एक पड़ाव जीवन का सफर
फिर और कहीं ,राहें तमाम

हम एक मुसाफिर मंजिलके
 तय करता एक नियंता है
रोने गाने से क्या हासिल
वो जीवन का अभियंता है

कोई टिप्पणी नहीं: