बेटियां --
बेटियां नही औरतें होती हैं वो,
मर मर के जीती हैं
,विष पी के ;
कान्हा की बांसुरी में बजती हैं,
कांटों में उलझ के राह बुनती हैं,
अपनी जमीं से बेदखल होती हैं,
ज़िन्दगी सेंतती हैं और खुद चुक जाती हैं।
बस मरती नही वो जो,
बेटियां नही औरतें होती हैं!
अपनी ही माँ की,
माँ सी औरों की उपेक्षा झेलती हैं,
कोई व्रत नहीं मनौती नही
फिर भी हर हाल में जीती हैं।
अमर बेल हैं ;
अमृत घट बन के छलकती हैं
हाँ बेटियां नही,औरतें होती हैं वो।
बेटियां नही औरतें होती हैं वो,
मर मर के जीती हैं
,विष पी के ;
कान्हा की बांसुरी में बजती हैं,
कांटों में उलझ के राह बुनती हैं,
अपनी जमीं से बेदखल होती हैं,
ज़िन्दगी सेंतती हैं और खुद चुक जाती हैं।
बस मरती नही वो जो,
बेटियां नही औरतें होती हैं!
अपनी ही माँ की,
माँ सी औरों की उपेक्षा झेलती हैं,
कोई व्रत नहीं मनौती नही
फिर भी हर हाल में जीती हैं।
अमर बेल हैं ;
अमृत घट बन के छलकती हैं
हाँ बेटियां नही,औरतें होती हैं वो।
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