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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

रविवार, 31 मार्च 2019

बाली उमर मधुर /कटु संजोग



मृदु जीवन और कटु सच्चाई
बाली उमर की वो अंगड़ाई
खुलती आंखें दिखता यौवन
और जीवन की नित नई उलझन

सपनो का आकाश यहीं है
नई प्रीत के गीत यहीं हैं
यहीं भविष्य के सुंदर सपने
पर बन्धन अनगिनत हैं कितने

सबकी अभिलाषाओं के बंधन
कुछ अपने मन नीड का सृजन
अनचीन्ही अनसुलझी उलझन
कभी खुशी कहीं क्रोध का क्रंदन

विचलित उमर विद्रोही मन है
ऐसे में घनघोर  बिछलन है
मर्यादा ,संस्कार की शिक्षा
भाती मन को संग साथ की इच्छा

कभी बड़े कभी बचपन के  ताने
भ्रमित है ये मन खुद को क्या जाने
मधुर  प्रेम जिसने जतलाया
आक्रोशित मन ने उसमें  सुख पाया

बहुत कठिन जीवन के ये पल हैं
सहज सहारा स्नेह का बल है
ऐसी उमर के पुष्पित होने  को
धीरज धैर्य ,अनुशासन सम्बल हैं।

कटु अनुभव से इन्हें बचाएं
कहीं न स्नेह पुष्प कुम्हलायें
स्नेह घटक घर मे ही छलके
चाहे लड़की हों या लड़के

रविवार, 24 मार्च 2019

घर पुराना..

घर कितना कुछ देखते हैं..
पीढ़ियां बदलते,
सुख दुःख के ज्वार- भाटे,
चढ़ती बरातें ,उठते जनाजे,
बजती शहनाई ,सूने चौबारे,
बदलती शकलें,उलझती राहें,
सरकती गांठें,सिमटते रिश्ते
घर कितना कुछ देखते हैं 
और साथ हम भी....!!

शनिवार, 23 मार्च 2019

रूढ़ियाँ

कोमल गातों को देखा है
नवजीवन के पुंज सरीखे
कितनी कलियाँ कितने कंछे।।

और राह चलो तो मिल जाती हैं
ढेरों सूखी बिखरी डाठें
मृतप्राय टूटती ;
मगर फिर भीऐंठी अकड़ी सी,
--रूढ़ियों जैसी ।।

मिट जाना ही श्रेयस्कर है
उस धर्मध्वजा का ,
जो मनुज मात्र को समझ सके ना
"उसका" अभिनन्दन
जो मनुज मात्र का , जीव मात्र का,
कर  सके ना वन्दन।।

गुरुवार, 21 मार्च 2019

कालचक्र


आभासी है ये कालचक्र
जुड़ी हुई है कहीं और नियति

धागे से कठपुतली के
हैं छद्मवेश ,हैं छद्मनाम
कहीं और नियति कहीं और धाम

है एक पड़ाव जीवन का सफर
फिर और कहीं ,राहें तमाम

हम एक मुसाफिर मंजिलके
 तय करता एक नियंता है
रोने गाने से क्या हासिल
वो जीवन का अभियंता है

रविवार, 17 मार्च 2019

बेटियां नही,औरतें हैं वो।

बेटियां --
बेटियां नही औरतें होती हैं वो,
मर मर के जीती हैं
,विष पी के ;
कान्हा की बांसुरी में बजती हैं,
कांटों में उलझ के राह बुनती हैं,
अपनी जमीं से बेदखल होती हैं,
ज़िन्दगी सेंतती हैं और खुद चुक जाती हैं।
बस मरती नही वो जो,
 बेटियां नही औरतें होती हैं!
अपनी ही माँ की,
 माँ सी औरों की उपेक्षा झेलती हैं,
कोई व्रत नहीं मनौती नही
फिर भी हर हाल में जीती हैं।
अमर बेल हैं ;
अमृत घट बन के छलकती हैं
हाँ बेटियां नही,औरतें होती हैं वो।

गुरुवार, 14 मार्च 2019


एक छतरी उड़ गई
भीगते ठिठुरते रह गए
तीन बच्चे
डाल घेरे बाँह के; राह में
अकेले ,निर्जन से पथ में
एक शहर एक गांव
जो जाना सा था
तेरी नज़र के दायरों से,
अचानक ही
कितना अचीन्हा रह गया,
ओ निठुर!!