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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

शुक्रवार, 20 मई 2016


विशाल वृक्ष और उसकी छाया में
पलते कुछ सपने
आँखें मीचे कुनकुनी सी धुप में
सपने देखने का सुख ---
समझ सकता है सिर्फ वोही
जिसने खो दिया हो  असमय ही
 किसी अपने को
  उठ गया हो सर से जिसके
साया पिता के स्नेह का --असमय ही .वो कैसे देखे सपने जब -
सवाल हो सामने   ज़िम्मेदारी का
खो गए थे सपने उसके -उसी दिन
एक विशाल वृक्ष कि छाँव बिना

मंगलवार, 19 जनवरी 2016

बदलते मौसम

वो जो इक उम्र तराश के
किसी आले में रख छोड़ी थी हमने
सूखने जम जाने के लिए
हलकी हलकी सी उसमें नमी आ गयी है
जाने कब इक बीज उम्मीदों का
पड़ गया था कभी
कुछ पनपते हुए कंछे दिखाई देते हैं

बहती हवाओं में भी कुछ
तिरते सेरंग दिखाई देते हैं
स्याह पन्नों से अलफ़ाज़ छलक के बहते हैं
इक वीरान मन के आँगन में
कहीं गीता कहीं कुरआन सुनाई देते हैं
कहीं डूबी सी नब्ज़ थी कोई
कोई सोया हुआ सा सपना था
ज़बर और ज़ब्त से छलके हुए पैमाने थे
अपनी आवाज़ों के सन्नाटे थे
कैद दीवारो में मन की एक नगमा था
आज नज़्मों को इक आवाज़ मिल गयी है
सूखती बेलों को बारिशों की फुहार मिल गयीहै
ख्वाहिशों को मिल गया है गीत कोई
बंद पिंजरों को आसमानों की परवाज़ मिल गयी है

जाला ना करेजवा बिन्धाय हो


चिरई रे काहे तू करे लू पुकार हो
करेजवा जाला रे छेदाय हो
के कजरी हो काहे के करे लू तू गुहार हो
मनवा के पथरा पे पनिया के बूँदवा हो
काहे के जाला बिछलाय हो
कुहुक कुहुक तू त गावेलू बगिचवा में
जाला करेजवा जुराय हो
के ऋतुवा बसंत के जो आवेला उमरिया पे
तू ही गीतिया से दे लू ना संवार हो
के तोहरा दरद हमसे सुनलो ना जाला
जाला कइसन त करेजवा बिन्धाय हो
कैसे कहीं तोहरे रोअळा से हमरा
जियरा त जाला ना डराय हो
के तोहरे पियवाके बाँध के लिहले जाला ब्याध
ईहै विरह व्यथा है का तुहार हो
के लइकन के तोहरे पकडले बा बटोहिया हो
के करे लू अइसन चीत्कार हो
न। रोआ हो कोइल रानी न रोआ हो करेजवा
के बिरह ब्यथा ह अपार हो
पकड़ जैहें ब्याध हो पकड़ जैहें बटोहिया
पकड़ लीहें राजा जी
लीहें तोहरे करेजवा के छुड़ाय हो
न रोआ हो चिरई रानी
ना रोवा हो कोइल रानी
अइहैं सजनवा तुहार हो

सोमवार, 18 जनवरी 2016

हरियाली

वो जो इक उम्र तराश के
किसी आले में रख छोड़ी थी हमने
सूखने जम जाने के लिए
हलकी हलकी सी उसमें नमी आ गयी है

जाने कब इक बीज उम्मीदों का
पड़ गया था कभी
कुछ पनपते हुए कंछे दिखाई देते हैं

बहती हवाओं में भी कुछ
तिरते सेरंग दिखाई देते हैं
स्याह पन्नों से अलफ़ाज़ छलक के बहते हैं
इक वीरान मन के आँगन में
कहीं गीता कहीं कुरआन सुनाई देते हैं

कहीं डूबी सी नब्ज़ थी कोई
कोई सोया हुआ सा सपना था
ज़बर और ज़ब्त से छलके हुए पैमाने थे
अपनी आवाज़ों के सन्नाटे थे
कैद दीवारो में मन की एक नगमा था

आज नज़्मों को इक आवाज़ मिल गयी है
सूखती बेलों को बारिशों की फुहार मिल गयीहै ख्वाहिशों को मिल गया है गीत कोई
बंद पिंजरों को आसमानों की परवाज़ मिल गयी है

गुरुवार, 14 जनवरी 2016

पुनरावृत्ति

मायका माँ से पिता से पीहर
वो सोये तो खोया एक घर
बचपन के वो खेल खिलोने
मेले ठेले नज़रेंऔर वो टोने

उड़ी पतंगें कटा वो मांझा
डोर वो टूटी खोया बचपन साझा
ना अब वो खील खिलोने
ना ही लैया तिल औ ढूंढे

ना पीली अबरक की साड़ी
ना सौंधी गुड़ की महक वो प्यारी
कहाँ गया वो बचपन घर वो टूटा
खो गया मायका पीहर वो छूटा

महक वो पीहर के गुजरे दिनों की
ले गयी उड़ा के दूर समय से
के जगा दिया मुझको बेटी ने
लिपट केआँचल में छिप छिप कर

जग गयी अचानक ख्वाब से ज्यूँ मैं
और समझ गयी जग की सच्चाई
माँ गयी नही है भरम है मेरा
वो मुझमें ही है आन समायी

शिकवे


तजर्बे तो उम्र भर कम नही होते
ज़िंदगी कब पुर सुकून होती है
नुक्सो हिदायत के तंज़ अपनों के है
बाहिर तो इक मुकम्मल तस्वीर मिलती है

*तजर्बे। experiments

शनिवार, 2 जनवरी 2016

ओ मनमीत

कब आए कब चले गए
ओ मनमीत,
गीत कहाँ सब रीत गए
ओ मनमीत
संग सुहाना साथ पुराना
प्रीत नयी या प्यार पुराना
भूल चले या छूट गया
ओ मनमीत
कितना समय बहा झरने में
कितने मौसम रुके चले
कितनी यादें बातेंबरसीं
मन के रेतीले आँगन में
भीग चला था जब वो आँचल
तब जा कर तुम कहाँ मिले
इस आँगन को इस आँचलको
नमी दिखा कर कहाँ  चले
ओ मनमीत
कब आये कब  चले गए
ओ मनमीत
गीत कहाँ सब रीत गए
ओ मनमीत

शुक्रवार, 1 जनवरी 2016

नव विहान

एक नए गीत का कल नव विहान हो
बीतते पलों का भी कुछ अंश दान हो
हर बीत जाता पल यूँ ही व्यर्थ जाता नही
कुछ दे ही जाता हैहमें सहेजना आता नहीं

जाने वाला वक़्त देता है हमें अनुभव कई
अच्छी बुरी जैसी भी हों छुपी हुई सीखें नयी

कल उपजता है हमेशा आज की ही कोख से
संवारना हो कल तो लम्हों को चुरा लो आज से

कल की हंसी तो आज की सीखों पे टिकी है
मेहनत जो तेरी आज  वही खुशियों की जमीं है
सबक जो कड़वे तुमको आज मिले हैं
याद रखना उनको तुम्हें भूलना नहीं है

नव वर्ष में खुशियाँ ही होंगी ऐसा नहीं है
पर थक के बैठ जाओ कभी ऐसा भी नहीं है
हर कदम तुम्हारा जब भी उठे अनुभव पे टिका हो
जो जाने वाले साल ने कल तुमको दिया हो

नव वर्ष नव विहान आप सब को मंगलमय हो