कुछअनकही..कुछ अनसुनी..
अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही कभी कभी, झांकते हुए से कभी इस पल्ले से ...
तजर्बे तो उम्र भर कम नही होते ज़िंदगी कब पुर सुकून होती है नुक्सो हिदायत के तंज़ अपनों के है बाहिर तो इक मुकम्मल तस्वीर मिलती है
*तजर्बे। experiments
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