मायका माँ से पिता से पीहर
वो सोये तो खोया एक घर
बचपन के वो खेल खिलोने
मेले ठेले नज़रेंऔर वो टोने
उड़ी पतंगें कटा वो मांझा
डोर वो टूटी खोया बचपन साझा
ना अब वो खील खिलोने
ना ही लैया तिल औ ढूंढे
ना पीली अबरक की साड़ी
ना सौंधी गुड़ की महक वो प्यारी
कहाँ गया वो बचपन घर वो टूटा
खो गया मायका पीहर वो छूटा
महक वो पीहर के गुजरे दिनों की
ले गयी उड़ा के दूर समय से
के जगा दिया मुझको बेटी ने
लिपट केआँचल में छिप छिप कर
जग गयी अचानक ख्वाब से ज्यूँ मैं
और समझ गयी जग की सच्चाई
माँ गयी नही है भरम है मेरा
वो मुझमें ही है आन समायी
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