विशाल वृक्ष और उसकी छाया में
पलते कुछ सपने
आँखें मीचे कुनकुनी सी धुप में
सपने देखने का सुख ---
समझ सकता है सिर्फ वोही
जिसने खो दिया हो असमय ही
किसी अपने को
उठ गया हो सर से जिसके
साया पिता के स्नेह का --असमय ही .वो कैसे देखे सपने जब -
सवाल हो सामने ज़िम्मेदारी का
खो गए थे सपने उसके -उसी दिन
एक विशाल वृक्ष कि छाँव बिना

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