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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

बुधवार, 26 अगस्त 2015

तेरी चूनर


इक बंद तिज़ोरी सपनो की
जैसे गलती से है खुल बैठी,दो चार यहाँ ,दो चार वहाँ
 हर कोने से ,हर नुक्कड़ से

कुछ लुके छिपे कुछ भूले से
कुछ आंसू में धुंधलाये से,कुछ बोझिल तेरी यादों से
कुछ हैं मुस्काते यादों में
कुछ बांह पसारे आये हैंll

कैसे इनको अब  बाँध के मैं
पिंजरे में फिर से  बंद करूँ,घुट  जाएँ इनकी सांसें तो
क्या हमखुश भी रह पाएंगे?

चुन चुन कर अबइन यादों को
 इन सपनो को,उन वादों को
 इक 
चूनर सी सिलवाई है
अब
 डाल के इसको चेहरे पर
  नकी छाया में चलते हैं

 क्या हुआ अगर ये मिल न सके
 क्या हुआ अगर वो मिल न सके ll

सोमवार, 24 अगस्त 2015

दुआओं के रिश्ते--

जब भी तुझको याद करते हैं
 इक दुआ का ख़याल आता है
मेरी साँसों से निकली
तेरी हमसफ़र थी
इक तार तेरे मेरे दरमियान
दुआओं में बहते आंसुओं का रिश्ता —-
–समझना/समझाना बेहद मुश्किल है !

शुक्रवार, 21 अगस्त 2015

दरमियान


चलो कहीं दूर चल के मिलते हैं
उजालों और अंधेरों के दर्मियां
शाम और  रात के बीच कहीं
झुटपुटा सा अन्धकार हो
हलकी सी रोशनी हो
आदर्शों के इश्तिहार न हों
वर्जनाओं की  दीवार न हो
ना तुम  हो, न मैं हूँ;
 न दुनिया ही  के झमेले हों
न पैरों में हो आत्म मंथन की जंजीर
क्या सही क्या गलत की उलझनें
बस मासूम सा एक प्यार हो
जो हो न सका कभी वो इज़हार हो
तुम्हारी बाहों में मैं सुकून पा जाऊं
मेरी आँखों में तुम अपनी वफ़ा पढ़ लो
कोई तो ऐसी जमीन हो आसमान हो
जहाँ तुझसे आके मिलूं मैं
और फिर तुझमें ही फ़ना हो जाऊं

बुधवार, 19 अगस्त 2015

प्यार की इंतिहा

बैठेहो कभी घंटों किसी तस्वीर के आगे
     अनवरत बिना कुछ बोले
बिना कुछ सोचे बिना कुछ समझे
बस देखतेउन आँखों की गहराइयों में
अकेले उसके साथ होने का अहसास
      कुछ अलगसी दुनिया
    कुछ पाने का अरमान नहीं
    कुछ खोने का भय नहीं
     सिर्फ एक सिहरन सी
       सिर्फ एक छुअन सी
 मानो लहर कोई समंदर की भिगो गयी हो धीरे से
       और भीगी ठंडी रेत से उठती
     तपन को समो लेने का एहसास 
 आँखें मूँद के उस पल उस चाहत को
        पीने का अहसास
         नही किया न--?
      तो कैसे समझ पाओगे
मेरी मोहब्बत को, मीरा कीपूजा को,
       राधा के प्रेम को
   दीवानगी है ये प्रेम नही है 
  कहोगे तुमजानती हूँ मैं
 मगर प्यार की इंतिहा ही तो है दीवाना पन

नींद-

इक नींद सी आती रही
   इक ख्वाब सा जगता रहा
          नन्हा सा था कोई लम्हा
पाँव पाँव चलता रहा
      तपती रही धुप ज़िंदगी की
          छाँव सपनो की मरहम लगाती रही
                    अब नींद अधूरी है और ख्वाब -
आतिशों से;चमक कर बुझ चुके है.
          आँख खोलने से डरते हैं
          दुनियावी हकीकत में  ;
      समझ में सब कुछ आता है
     मगर फिर भी नहीं आता
   जीना चाहते हैं हम ;
मगर फिर भी जिया नहीं जाता

सोमवार, 17 अगस्त 2015

सन्नाटा

गगन पे लटका घनघोर कुहासा ,
अंधेरों में मुंह छुपाये बैठा है सूरज
रोशनी होगी मगर कब -क्या मालूम --!
आगत की कोई आहटनहीं. सन्नाटा सा पसरा है 
आने वाला कहीं, कोई तूफ़ान तो नहीं 
मन के मरुस्थल में उगते नागफनी से कांटे
छेद डालते हैं अन्तःस्थल का रेशमी आवरण
प्रश्नो के सैलाब है, जवाब कोई नहीं --
अँधेरा है चहुँ ओर-रोशनी कोई नहीं --
उजालों की आहट पे कान लगे हैं
दूर कहीं इक खटका सा हुआ है
चमक कर बुझ गया है सय्यारा कहीं
लगता है -सुबहा होने में बड़ी देर है अभी
कोलाहल है बहुत मन में ;
आवाज़ें ही आवाज़ें हैं --
इनमें ,अपनी ही आवाज़ गुम हो  गयी है शायद ;
बोलना चाहूँ तो शब्द खो जाते हैं -
सोचूँ तो ख़यालात कहाँ चले जाते हैं :
निविड़तम इस अँधेरे में;
 शोर के इस जंगल में ;
मन के इस सन्नाटे में ;
रिश्तों के इस मकड़जाले में ;
उलझी सी है इक लहर -
रिस रही है किसी नासूर की तरह
बूँद बूँद कर टपकती -रातों में ; ओस की तरह -
ख़त्म हो ही जायेगी  इक ज़िंदगी 
उजालों का मुंह देखे बगैर