Featured post

यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

मंगलवार, 29 जून 2021

पर्यावरण चिंतन -वस्तुस्थिति


अनपढ़ जो सुन कर करते थे
हमने भी अर्थ नही ढूंढा
वो आंख मूंद कर चलते रहे
हमने भी मर्म नही बूझा

जल जीवन है जल संचय करो
हमने शावर और टब घर घर बनवाये
वो तालाब बावड़ी बनवाते
हमने वो सारे पटवाये

वो धर्मकार्य के हेतु सदा फलदार वृक्ष लगवाते रहे
हम बुलेट ट्रेन चलवाने को हजारों पेड़ कटवाने चले

वो बरगद पीपल पूजते थे 
हमने जंगल के जंगल कटवाए
वो वहम के मारे अनपढ़ थे
हम खुद को ज्ञानी साबित कर आये

अब त्राहि त्राहि हम करते हैं संचय जल की बातें करते है
जीवन संकट जब सन्मुख आया
अनपढ़ को याद हम करते हैं

शुक्रवार, 25 जून 2021

बिछोह!

क्या माता का उर न कातर होता होगा?
छलनी क्योंकर न कलेजा होता होगा।
तुझको विदग्ध यूँ देख देख  क्या हृदय न वो फटता होगा?
माता की पीर हृदय में रख
निजव्यथा से उठ सन्धान करो
हर माँ में वो छवि  निरख निरख कर्तव्य को अंगीकार करो।
भगवान इस अपार दुख को सहन करने की शक्ति आपको प्रदान करें ।

गुरुवार, 24 जून 2021

शायद...!!


शायद कोई पत्ता खड़के शायद कोई उम्मीद जगे
शायद नदिया थम जाए,शायद तुम सच मे आ जाओ

शायद कोई आस जग जाए नई ,शायद कोई तो कांधा हो ,
थक जाने पर सुस्ताने को या फिर  कोई राह दिखाने को
शायद मेरे कदमो के नीचे भी कभीअपने हाथ बिछाये कोई
शायदमेरे सपनों के दिये में कभी बाती बन उजास लाये कोई
शायद कोई टूट के चाहे शायद कोई साथ निभाता हो
शायद मेरे मुश्किल पथ में कोई मेरा साथ निभाता हो।
सपनो की इस दुनिया मे शायद कोई शक्ल कभी उभरे
शायद इस जीवन पथ में कभी कोई रोशन दीप कभी उभरे 
शायद...

गुरुवार, 10 जून 2021

हमसफर

 अच्छा है 

कुछ कदम की हों दूरियां तो आप बढ़ के  मिटा लीजिए 


गुलों में  सिर्फ खुशबुओं की हो जो दास्तान तो बहुत अच्छा है 

साथ गर कांटे भी हों तो चुभन  का मिलकर मजा लीजिए


दूर तलक तेरी राहों में सुबहा की ही आहट हो तो बहुत अच्छा  है 

जो कहीं सफर में रात हो चले तो आसमानों को चादर बना लीजिए 


ज़िन्दगी मौसीकीयों की मजलिस हो तो क्या बात है और जो वीराने मिल जाएं  कहीं तो साथ महफ़िल सजा लीजिए


कदम कदम पर जो उसकी निगहबानी हो तो बहुत अच्छा है मगर जो  दूरी दरमियानी हो तो  तसव्वुर में उन निगाहों को बसा लीजिए


हमसफ़र

हमसफ़र हमकदम  हमख्याल भी हो तो बहुत अच्छा है 
कुछ कदम की हों दूरियां तो आप बढ़ के  मिटा लीजिए 

गुलों में  सिर्फ खुशबुओं की हो जो दास्तान तो बहुत अच्छा है 
साथ गर कांटे भी हों तो चुभन  का मिलकर मजा लीजिए

दूर तलक तेरी राहों में सुबहा की ही आहट हो तो बहुत अच्छा  है 
जो कहीं सफर में रात हो चले तो आसमानों को चादर बना लीजिए 

ज़िन्दगी मौसीकीयों की मजलिस हो तो क्या बात है 
और जो वीराने मिल जाएं  कहीं तो साथ महफ़िल सजा लीजिए

कदम कदम पर जो उसकी निगहबानी हो तो बहुत अच्छा है 
मगर जो  दूरी दरमियानी हो तो  तसव्वुर में उन निगाहों को बसा लीजिए