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यादों की चिड़िया

अब मिलना नही होता तुझसे कभी पर , तेरे ख़त अब भी मिल जाते हैं , बिखरे हुए दानों की तरह मुझे यूँ ही  कभी कभी,  झांकते हुए से   कभी इस पल्ले से ...

गुरुवार, 25 जून 2020

इंतज़ार

तुम आओगे तुमने कहा था
तुम आये क्यों नहीं , तुमने बुलाया क्यों नहीं
कितना पानी बह गया
समय के दरिया में
मैं खड़ी रही ,किनारे पर एक तरफ
तुम आये क्यों नहीं ,तुमने बुलाया क्यों नहीं
तुम अब क्यों आये हो आवाज़ दे रहे हो इतनी जोर से
क्यों बुला रहे हो मुझे
मानो मेरे बिन तुम्हारा कोई नहीं
तुम अब क्यों आये हो जब तुम्हारा आना
कोई आना न रहा
मैं मैं न रही  और कोई सपना बाकी न रहा

रविवार, 21 जून 2020

बस इतना सा आसमान

बस उतना ही आसमान मेरा है.......
बरसों पहले,एक लड़की थी, मेरी साथी,मेरी दोस्त ,मेरी बहन ,बहुत अजीज़ ;बिंदास हंसती खेलती, खुश रहने वाली खुश रखने वाली, मतलब ये के बहुत प्यारी ।खुलते आसमानों में चिड़िया जैसी ,कोई रोक नही बन्धन नही , भाई नही थे तो लड़को का काम भी खुद ही करना था अंदर बाहर सभी 
 फिर अलग हो गए हम, मिली उस से कुछ समय बाद , शादी के बाद उसकी , घर गयी थी ,दो तल्ला मकान सभी सुख सुविधाओं से भरा ,पुरानी हवेली की तरह | रौशनी के लिए ,हवा के लिए ,खिड़कियां और रौशनदान तो थे मगर सींखचे बन्द थे 
बोलने की इज़ाज़त तो थी ,मगर सिर्फ हाँ  ।
हैरान थी ,जो लड़की खिलखिला के हंसती थी तो सारी दिशाएं कौंध जाती थीं, ग्रहण लग गया था उस हंसी को ,आने से पहले मिली तो खिड़की की सलाखों को पकड़ घूँघट लिए खड़ी थी
वो, जैसे पिंजरे में बन्द मैना जिसका आकाश सिमट आया था मानो खिड़की में
 मेरा आकाश बस इतना सा ,
मेरी दुनिया कितनी सिमटी सी
मेरी नज़रो में समाई धुप छाँव ,
बस इतनी सी...!!
कल तो दुनिया का  मेरी 
 फैलाव समेटा जाता न था,
इक छोर था मेरा जहाँ
 दूसरा सिरा कोई न था।
खुलते बहते बादल थे मेरी 
अठखेलियों का सामान,
और धुप छाँव में
 मेरी खुशियों के रंग खिलते थे ।
आज बन्द एक खिड़की से 
दीखता हुआ एक कोना 
जो शायद स्याह है ,
मेरी बुझती उम्मीदों के रंग ले कर।
उतना ही ;
बस उतना ही ;आसमान मेरा है।

शनिवार, 20 जून 2020

पीछे छूटती अम्माँ

बाप और बेटे के बीच मे ठहरी
बफर सोल्यूशन सी अम्मा 
रस्साकशी में पिता पुत्र की
 फ़सरी में बस खींची जाती अम्माँ

बाप की गलियों और लाठियों से
बेटे के सामने पड़ बचाती अम्माँ
बेटे की फरमाइशों और ख्वाहिशों को
ऊपर तक पहुंचा बस झिड़की खाती अम्माँ
तब भी शायद बेटे को मिसरी सी लगती अम्माँ

...बस एक उम्र तक ,
उसके बाद.....

हर गलत फैसले बीते दिनों के ,
की ज़िम्मेदार ठहराई जाती अम्माँ
बाप भी खुश और बेटा खुश 
बस फूंक में उड़ाई जाती अम्माँ

अब बेटे की नज़रों में  शिकायत सी चमकाई जाती अम्माँ
हर झगड़े में कुटिल चाणक्य सी दिखलाई  जाती अम्माँ

घर में रही और  घर से ही बन्ध कर रह गयी जो अम्माँ
बेटे को बदलते और पिता सा ढलते देखती रह गयी अम्माँ।।

गुरुवार, 18 जून 2020

खामोश ख्वाहिशों के जंगल

कितना कुछ है न ,
जो आप साझा करना चाहते हो 
किसी अपने से ;
किसी खास से ..!!
छोटी छोटी बातें ,सपने ,उलझनें ,
कोई हल्की फुल्की सी  बात,
 कोई उच्छ्वास;
झूल जाना यूँ ही हंसते- हंसते ,
किसी कंधे पे अचानक;
या यूँ ही हाथ पकड़ कर बैठे रहना
उसकी उंगलियां  गिनते ;
या फिर बालों में घुमाते हाथ ,
बालों को हल्के से जकड़ के
 फिर छोड़ देना....!
और उन उट्ठी हुई पलकों को बेसाख्ता
चूम लेना आहिस्ता से
कुछ लकीरों में ये ख्वाब होते हैं
साथ चलते हुए उम्र भर...खामोश !!

बुधवार, 17 जून 2020

नादान ये दिल माना ही नही. .

ख़्वाब कई, अल्फ़ाज़ कई,
कुछ ज़ाहिर थे, पर कहे नहीं,
कुछ बोल दिए, कुछ कभी नहीं।

कुछ अहसासों को शब्द मिले
कुछ गहन मौन में खो से गए
हर गीत संजोया भावों में
कल मिलने की हसरत में सही
ये सहर गलत तो रात सही
ये ज़मीं गलत तो फलक सही
वो हर लम्हा हर वक़्त सही
जहाँ हम तुम हों तन्हाई भी

कुछ गीत हों और अफसाने हों
हम जैसे कुछ दीवाने हों
अल्फ़ाज़ वही दोहराने हों 
पलकों में वो ख्वाब सजाने हों

जो मेरे थे पर पलको में सदा
ये छवि तेरी दिखलाते रहे
जिन्हें कभी किसी से कहने को 
नादान ये दिल माना ही नही..

..नादान ये दिल माना ही नही।।

रविवार, 7 जून 2020

विचलित

मुझे लगता है कि मैं अमरबेल हूँ;
जी जाऊंगी
कोई साथ रहे ना रहे
 
हर रिश्ते से भाग आती हूँ मैं ,
गांठ खोल कर,
कर लुंगी पूरा ये सफर 
कोई साथ चले ना चले

किसी रिश्ते को जकड़ने को 
लगाती नही पूरी ताकत
कोई छोड़े मुझे  उससे पहले 
छोड़ आती हूँ मैं हर रिश्ता खुद से
निबाह लुंगी मै खुद से
कोई जुड़े मुझसे, न जुड़े।


बुधवार, 3 जून 2020

मीमाँसा

प्रेम कितना दुरूह है ..!
...और कितना सरल।!!
कृष्ण और राधा ;
राधा और कृष्ण
कृष्ण की राधा 
या राधा बिन कृष्ण,
मीमांसा करते युग निकल गए 
कोई थाह न पा सका ।
अनवरत है प्रेम उनका,
 अबाध -निर्बाध   ;
 पाने और खोने ,
 मिलने और बिछुड़ने की
  सीमाओं से ,
 अनाविष्ट ;
 कितना सहज ,
 फिर भी;
  कितना उलझा हुआ !
 कितना सुगम,
  फिर भी अगम्य!!
पर प्रेम है ..सिर्फ प्रेम!!